रासिख़ अज़ीमाबादी
ग़ज़ल 7
अशआर 4
शागिर्द हैं हम 'मीर' से उस्ताद के 'रासिख़'
उस्तादों का उस्ताद है उस्ताद हमारा
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आने में सदा देर लगाते ही रहे तुम
जाते रहे हम जान से आते ही रहे तुम
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जब तुझे ख़ुद आप से बेगानगी हो जाएगी
आश्ना तब तुझ से वो देर-आश्ना हो जाएगा
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बाज़ार जहाँ में कोई ख़्वाहाँ नहीं तेरा
ले जाएँ कहाँ अब तुझे ऐ जिंस-ए-वफ़ा हम
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