रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल 130
अशआर 112
क्या मज़ा देती है बिजली की चमक मुझ को 'रियाज़'
मुझ से लिपटे हैं मिरे नाम से डरने वाले
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
जिस दिन से हराम हो गई है
मय ख़ुल्द-मक़ाम हो गई है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
मेरी सज-धज तो कोई इश्क़-ए-बुताँ में देखे
साथ क़श्क़े के है ज़ुन्नार-ए-बरहमन कैसा
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए