सादुल्लाह शाह
ग़ज़ल 14
नज़्म 1
अशआर 6
तुम ने कैसा ये राब्ता रक्खा
न मिले हो न फ़ासला रक्खा
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तू रुके या न रुके फ़ैसला तुझ पर छोड़ा
दिल ने दर खोल दिए हैं तिरी आसानी को
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ऐसे लगता है कि कमज़ोर बहुत है तू भी
जीत कर जश्न मनाने की ज़रूरत क्या थी
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तू न रुस्वा हो इस लिए हम ने
अपनी चाहत पे दायरा रक्खा
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