आम तेरी ये ख़ुश-नसीबी है
वर्ना लंगड़ों पे कौन मरता है
साग़र ख़ैय्यामी की गिनती हास्य-व्यंग के अतिलोकप्रिय शायरों में होता है। उनकी पैदाइश 7 जून 1964 को एक शैक्षिक और सांस्कृतिक रखरखाव और अपनी साहित्यिक और शैक्षिक सरगर्मीयों के लिए प्रसिद्ध था। साग़र ख़ैय्यामी के दादा उनके पिता और उनके भाई सब शायरी करते थे। साग़र ने आरम्भ में ग़ज़ल की पारंपरिक ढंग की शायरी की लेकिन अपने भाई नाज़िर ख़ैय्यामी (जो हास्य-व्यंग्य के एक अच्छे शायर थे) के असर से हास्य व्यंग की शायरी की तरफ़ आ गये। साग़र की आरम्भिक शिक्षा अरबी व फ़ारसी से हुई। इसके बाद उन्होंने अंग्रेज़ी की शिक्षा प्राप्त की और जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के शिसेत्तर सदस्यों से सम्बद्ध हो गये।
साग़र के काव्य संग्रह ‘अंडर-केज़’ और ‘पस-ए-रौशनी’, ‘क़हक़हों की बारात’, ‘कुछ वहाँ के लिए’ बहुत लोकप्रिय हुए। साग़र की नज़्मों में हास्य व्यंग्य दोनों एक साथ घुल मिल गये हैं। उनकी नज़्मों में ऐसी स्थिति बनती हैं कि पढ़ने