aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1905 - 1984 | दिल्ली, भारत
प्रमुख लोकप्रिय शायर, देश भक्ति की नज़मों के लिए मशहूर / पदम भूषन से सम्मानित
तेरे नग़्मों से है रग रग में तरन्नुम पैदा
इशरत-ए-रूह है ज़ालिम तिरी आवाज़ नहीं
यही सहबा यही साग़र यही पैमाना है
चश्म-ए-साक़ी है कि मय-ख़ाने का मय-ख़ाना है
आँख तुम्हारी मस्त भी है और मस्ती का पैमाना भी
एक छलकते साग़र में मय भी है और मय-ख़ाना भी
दिल की बर्बादियों का रोना क्या
ऐसे कितने ही वाक़िआ'त हुए
लाओ इक सज्दा करूँ आलम-ए-बद-मस्ती में
लोग कहते हैं कि 'साग़र' को ख़ुदा याद नहीं
Afsaana Surayya aur Tahzeeb ki Sarguzisht
Aur Tahzeeb Ki Sarguzisht
1929
Anar Kali
Manzum Darama
1998
अनार कली
Anarkali
Asia
1942
Bada-e-Mashriq
1935
Bada-e-Mashriq (Part-001)
Volume-001
Chappu
Dulhanon Ki Conference
1930
ढूँढने को तुझे ओ मेरे न मिलने वाले वो चला है जिसे अपना भी पता याद नहीं
किस तरह भुलाएँ हम इस शहर के हंगामे हर दर्द अभी बाक़ी है हर ज़ख़्म अभी ताज़ा है
आँख तुम्हारी मस्त भी है और मस्ती का पैमाना भी एक छलकते साग़र में मय भी है और मय-ख़ाना भी
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