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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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सहबा लखनवी

1919 - 2002 | कराची, पाकिस्तान

सहबा लखनवी के शेर

कितने दीप बुझते हैं कितने जलते हैं

अज़्म-ए-ज़िंदगी ले कर फिर भी लोग चलते हैं

कारवाँ के चलने से कारवाँ के रुकने तक

मंज़िलें नहीं यारो रास्ते बदलते हैं

मौज मौज तूफ़ाँ है मौज मौज साहिल है

कितने डूब जाते हैं कितने बच निकलते हैं

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