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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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सलाम संदेलवी

1919 - 2000 | गोरखपुर, भारत

सलाम संदेलवी

अशआर 21

आए जो चंद तिनके क़फ़स में सबा के साथ

मैं ने उन्हीं को अपना नशेमन समझ लिया

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बहुत उम्मीद थी मंज़िल पे जा कर चैन पाएँगे

मगर मंज़िल पे जब पहुँचे तो नज़्म-ए-कारवाँ बदला

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बिजली गिरेगी सेहन-ए-चमन में कहाँ कहाँ

किस शाख़-ए-गुलिस्ताँ पे मिरा आशियाँ नहीं

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रह-ए-हयात चमक उठ्ठे कहकशाँ की तरह

अगर चराग़-ए-मोहब्बत कोई जला के चले

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है तिश्ना-लबी लेकिन हम क्यूँ उसे ज़हमत दें

अपना ही लहू पी लें साक़ी को जगाएँ क्या

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ग़ज़ल 3

 

नज़्म 13

गीत 2

 

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