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सरफ़राज़ नवाज़

1977 | आज़मगढ़, भारत

सरफ़राज़ नवाज़

ग़ज़ल 11

अशआर 13

इस गए साल बड़े ज़ुल्म हुए हैं मुझ पर

नए साल मसीहा की तरह मिल मुझ से

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बे-सदा सी किसी आवाज़ के पीछे पीछे

चलते चलते मैं बहुत दूर निकल जाता हूँ

बाप ज़ीना है जो ले जाता है ऊँचाई तक

माँ दुआ है जो सदा साया-फ़िगन रहती है

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वो कोई आम सा ही जुमला था

तेरे मुँह से बुरा लगा मुझ को

हम अपने शहर से हो कर उदास आए थे

तुम्हारे शहर से हो कर उदास जाना था

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