सय्यद अहमद हुसैन शफ़ीक़ लखनवी के शेर
दिल का कँवल बुझे हुए मुद्दत गुज़र गई
अब ये चराग़ लाएक़-ए-महफ़िल नहीं रहा
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ख़िज़्र से कह दो कि आ कर देख लें आब-ए-हयात
धोए जाते हैं निचोड़े जाएँगे गेसू-ए-दोस्त
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