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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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शफ़क़ इमादपुरी

1872/3 - 1944

शफ़क़ इमादपुरी

ग़ज़ल 1

 

अशआर 1

क़यामत से नहीं कम इंतिज़ार-ए-वस्ल की लज़्ज़त

ख़ुदा जाने कहीं वा'दा वफ़ा होता तो क्या होता

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