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शाहिद कबीर

1932 - 2001 | नागपुर, भारत

शाहिद कबीर

ग़ज़ल 22

नज़्म 1

 

अशआर 17

इस सोच में ज़िंदगी बिता दी

जागा हुआ हूँ कि सो रहा हूँ

कुछ तो हो रात की सरहद में उतरने की सज़ा

गर्म सूरज को समुंदर में डुबोया जाए

काँटों को पिला के ख़ून अपना

राहों में गुलाब बो रहा हूँ

ग़म का ख़ज़ाना तेरा भी है मेरा भी

ये नज़राना तेरा भी है मेरा भी

बे-सबब बात बढ़ाने की ज़रूरत क्या है

हम ख़फ़ा कब थे मनाने की ज़रूरत क्या है

पुस्तकें 5

 

चित्र शायरी 5

 

वीडियो 3

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शाहिद कबीर

ऑडियो 13

अंदर का सुकूत कह रहा है

कुछ देर काली रात के पहलू में लेट के

कर्ब चेहरे से मह-ओ-साल का धोया जाए

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