शहनाज़ परवीन सहर
ग़ज़ल 27
अशआर 1
ग़ुबार-ए-वक़्त में अब किस को खो रही हूँ मैं
ये बारिशों का है मौसम कि रो रही हूँ मैं
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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