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सय्यद काशिफ़ रज़ा

1973 | कराची, पाकिस्तान

नई नस्ल के अग्रणी पाकिस्तानी शायर।

नई नस्ल के अग्रणी पाकिस्तानी शायर।

सय्यद काशिफ़ रज़ा

ग़ज़ल 33

नज़्म 16

अशआर 5

मैं अपने-आप से कम भी हूँ और ज़ियादा भी

वो जानता भी है मुझ को तो जानता क्या है

कभी कभी मुझे लगता है वो नहीं है वो

मगर कभी कभी लगता है वो वही तो नहीं

इस क़दर ग़ौर से देखा है सरापा उस का

याद आता ही नहीं अब मुझे चेहरा उस का

वो जो मक़ाम है तेरा मिरी कहानी में

उसी मक़ाम पे मैं तेरे तज़्किरे में रहूँ

उस पे बस ऐसे ही घबराई हुई फिरती थी

आँख से हुस्न सिमटता ही नहीं था उस का

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