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सय्यद नवाब अफ़सर लखनवी

1909 - 1981 | लखनऊ, भारत

सय्यद नवाब अफ़सर लखनवी के शेर

नाख़ुदा मौजों की इस नर्म-ख़िरामी पे जा

यही मौजें तो बदल जाती हैं तूफ़ानों में

नुमूद-ए-सुब्ह से शब की वो तीरगी तो गई

ये और बात कि सूरज में रौशनी कम है

अल्लाह अल्लाह ये हंगामा-ए-पैकार-ए-हयात

अब वो आवाज़ भी देते हैं तो सुनते नहीं हम

क्या कहें बज़्म में कुछ ऐसी जगह बैठे हैं

जाम-ए-मय हादसा बन जाए तो हम तक पहुँचे

हुक्म-ए-लब-बंदी फ़रोग़-ए-दास्ताँ बनता गया

ज़ख़्म को जितना दबाया ख़ूँ-चकाँ बनता गया

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