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ताहिर फ़राज़

रामपुर, भारत

आलमी मुशायरों के मशहूर शायर। गीतों, ग़ज़लों और नज़्मों की अनोखी आवाज़, अपने तरन्नुम के लिए भी मशहूर

आलमी मुशायरों के मशहूर शायर। गीतों, ग़ज़लों और नज़्मों की अनोखी आवाज़, अपने तरन्नुम के लिए भी मशहूर

ताहिर फ़राज़

ग़ज़ल 27

नज़्म 1

 

अशआर 19

इस बुलंदी पे बहुत तन्हा हूँ

काश मैं सब के बराबर होता

उस ज़ाविए से देखिए आईना-ए-हयात

जिस ज़ाविए से मैं ने लगाया है धूप में

ख़त्म हो जाएगा जिस दिन भी तुम्हारा इंतिज़ार

घर के दरवाज़े पे दस्तक चीख़ती रह जाएगी

जब भी टूटा मिरे ख़्वाबों का हसीं ताज-महल

मैं ने घबरा के कही 'मीर' के लहजे में ग़ज़ल

तारीकियों ने ख़ुद को मिलाया है धूप में

साया जो शाम का नज़र आया है धूप में

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