aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1894 - 1951 | लाहौर, पाकिस्तान
उफ़ वो नज़र कि सब के लिए दिल-नवाज़ है
मेरी तरफ़ उठी तो तलवार हो गई
ग़म-ए-मोहब्बत में दिल के दाग़ों से रू-कश-ए-लाला-ज़ार हूँ मैं
फ़ज़ा बहारीं है जिस के जल्वों से वो हरीफ़-ए-बहार हूँ मैं
जिंस-ए-हुनर मज़ाक़-ए-ख़रीदार देख कर
ख़ुद बे-नियाज़ चश्म-ए-ख़रीदार हो गई
दिल के पर्दों में छुपाया है तिरे इश्क़ का राज़
ख़ल्वत-ए-दिल में भी पर्दा नज़र आता है मुझे
बर्दाश्त दर्द-ए-इश्क़ की दुश्वार हो गई
अब ज़िंदगी भी जान का आज़ार हो गई
Haji Baba Asfahani
Part - 002
Hazrat Zartusht
Khoji Ke Karname
Part-002
Madaaeh Wa Mraasi
मख़ज़न
शुमारा नम्बर-003
1919
Payam-e-Zindagi
Volume-009
Volume-010
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Volume-007
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