तालिब बाग़पती के शेर
यूँ भी तिरा एहसान है आने के लिए आ
ऐ दोस्त किसी रोज़ न जाने के लिए आ
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वो मेरे बा'द रोते हैं अब उन से कोई क्या पूछे
कि पहले किस लिए नाराज़ थे अब मेहरबाँ क्यूँ हो
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