तारिक़ मतीन के शेर
मौत बर-हक़ है तो फिर मौत से डरना कैसा
एक हिजरत ही तो है नक़्ल-ए-मकानी ही तो है
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कुछ और हो गई दुश्वार नेक-ओ-बद की तमीज़
कि अब तो ख़ैर के पर्दे में शर निकलता है
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