वक़ार वासिक़ी के दोहे
भाबी कल फिर आऊँगी अब तो जी घबराए
उन की आदत है अजब तन्हा नींद न आए
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दफ़्न करेगा तू कहाँ जलना भी मालूम
मानौता की लाश है सर पर ले कर घूम
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कल तक मेरी चाल में पड़ न सका था झोल
मंडवे-तले में बैठ कर आज बिकी बे-मोल
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