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वसीम ख़ैराबादी

- 1929 | उत्तर प्रदेश, भारत

वसीम ख़ैराबादी

ग़ज़ल 12

अशआर 4

फ़लक बेदाद करता है जो जौर ईजाद करते हैं

ग़ज़ब शागिर्द ढाता है सितम उस्ताद करते हैं

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आसमानों पर भी हैं चर्चे हुस्न-ए-आलमगीर के

चाँद ने भी रंग उड़ाए चाँद सी तस्वीर के

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उसे बहिश्त के ज़िंदाँ में भेज देना तुम

गुनाहगार-ए-मोहब्बत को ये सज़ा देना

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जुर्म इतने कर चला हूँ हश्र तक लिक्खेंगे रोज़

कातिब-ए-आमाल पाएँगे फ़ुर्सत काम से

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