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वसी शाह के ऑडियो

ग़ज़ल

अपने एहसास से छू कर मुझे संदल कर दो

वसी शाह

अपना तो चाहतों में यही इक उसूल है

वसी शाह

अब जो लौटे हो इतने सालों में

वसी शाह

अभी तो इश्क़ में ऐसा भी हाल होना है

वसी शाह

आँखों से मिरी इस लिए लाली नहीं जाती

वसी शाह

आज हमें ये बात समझ में आई है

वसी शाह

उदास रातों में तेज़ कॉफ़ी की तल्ख़ियों में

वसी शाह

उस की आँखों में मोहब्बत का सितारा होगा

वसी शाह

किस क़दर ज़ुल्म ढाया करते थे

वसी शाह

किसी की आँख से सपने चुरा कर कुछ नहीं मिलता

वसी शाह

गली में दर्द के पुर्ज़े तलाश करती थी

वसी शाह

तिरे फ़िराक़ के लम्हे शुमार करते हुए

वसी शाह

दुख दर्द में हमेशा निकाले तुम्हारे ख़त

वसी शाह

दुख-दर्द के मारों से मिरा ज़िक्र न करना

वसी शाह

दयार-ए-ग़ैर में कैसे तुझे सदा देते

वसी शाह

दिल की चौखट पे जो इक दीप जला रक्खा है

वसी शाह

फ़लक पे चाँद के हाले भी सोग करते हैं

वसी शाह

बाँध लें हाथ पे सीने पे सजा लें तुम को

वसी शाह

भँवर की गोद में जैसे किनारा साथ रहता है

वसी शाह

मैं हूँ तिरा ख़याल है और चाँद-रात है

वसी शाह

हज़ारों दुख पड़ें सहना मोहब्बत मर नहीं सकती

वसी शाह

नज़्म

मुझे हर काम से पहले

वसी शाह

ख़्वाब और ख़ुश्बू

वसी शाह

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