ज़फ़र ख़ान नियाज़ी के शेर
बस इक तुम ही नहीं मंज़र में वर्ना क्या नहीं है
सुराही चाँद तारे तितलियाँ जुगनू परिंदे
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किताब-ए-ज़िंदगी की ये मुक़द्दस आयतें हैं
हिरन चीतल चिकारे तितलियाँ जुगनू परिंदे
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