ज़हीन शाह 'ताजी', जिनका असली नाम मोहम्मद तासीन था, 1902 में राजस्थान के जयपुर शहर के शेखावटी के झुनझुनूँ तहसील में जन्मे थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता से ही प्राप्त की। उन्हें ख़ुशख़त-नवीसी का शौक़ था और इसमें महारत हासिल की। उनके पिता उन्हें शेर लिखवाते थे और बचपन से ही उन्होंने शेर लिखना शुरू कर दिया था। शुरुआत में उन्होंने अपने नाम का तख़ल्लुस इस्तेमाल किया। उनके पिता ने उनकी बुद्धि और दर्शन को देखते हुए कहा था कि तुम ज़हीन हो और तुम्हारा तख़ल्लुस भी 'ज़हीन' है।
ज़हीन शाह ताजी को ज्यादा उलूम-ए-दीनी (धार्मिक ज्ञान) पर रुझान था और वे साहित्यिक ज्ञान में भी महारत हासिल कर ली थीं। उनके पिता के वियाले के बाद हज़रत मौलाना अब्दुल करीम जयपुरी से बैअत हुई थी, जो यूसुफ़ शाह ताजी के नाम से मशहूर थे। वे चिश्तियाः सिलसिले के सूफ़ी थे और उनके मुरीद थे।
ज़हीन शाह ताजी ने जल्द ही ख़िलाफत और सज्जादगी के ज़िम्मेदारी भी संभाली। उन्हें सज्जादः-नशीनी की विशेष क्षमता थी, जो उन्हें उनके पिता से मिली थी। उनके मुर्शिद बाबा यूसुफ़ शाह ताजी के आख़िरी दिनों में वे पाकिस्तान जाना चाहते थे और उन्होंने 1948 में जयपुर से कराची यात्रा की। कराची पहुंचने के तीसरे दिन बाबा यूसुफ़ शाह ताजी विसाल हो गए थे।
ज़हीन शाह ताजी का अध्ययन इब्न-ए-अरबी के कामों पर भी था और उन्होंने इब्न-ए-अरबी की कुछ किताबों का उर्दू में अनुवाद भी किया। उनकी ग़ज़ल और नज़्म की कई पुस्तकें भी हैं, जैसे "आयत-ए-जमाल", "लमहात-ए-जमाल", "जमाल-ए-आयत", "जमालिस्तान", "इजमाल-ए-जमाल", और "लमआत-ए-जमाल"। उनकी भी बहुत सी नसरी किताबें हैं, जैसे "ताज-उल-औलिया", "इस्लामी आईन", और "इस्लाम और वहाबीयत"।