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ज़हीर देहलवी

1825 - 1911 | दिल्ली, भारत

ज़हीर देहलवी के ऑडियो

ग़ज़ल

उन को हाल-ए-दिल-ए-पुर-सोज़ सुना कर उट्ठे

फ़सीह अकमल

जहाँ में कौन कह सकता है तुम को बेवफ़ा तुम हो

फ़सीह अकमल

जाते हो तुम जो रूठ के जाते हैं जी से हम

फ़सीह अकमल

तलाफ़ी वफ़ा की जफ़ा चाहता हूँ

फ़सीह अकमल

दिल को आज़ार लगा वो कि छुपा भी न सकूँ

फ़सीह अकमल

दिल गया दिल का निशाँ बाक़ी रहा

फ़सीह अकमल

फटा पड़ता है जोबन और जोश-ए-नौ-जवानी है

फ़सीह अकमल

बज़्म-ए-दुश्मन में जा के देख लिया

फ़सीह अकमल

बिगड़ कर 'अदू से दिखाते हैं आप

फ़सीह अकमल

भूल कर हरगिज़ न लेते हम ज़बाँ से नाम-ए-इश्क़

फ़सीह अकमल

रक़ीबों को हमराह लाना न छोड़ा

फ़सीह अकमल

रंग जमने न दिया बात को चलने न दिया

फ़सीह अकमल

वो किस प्यार से कोसने दे रहे हैं

फ़सीह अकमल

वो झूटा इश्क़ है जिस में फ़ुग़ाँ हो

फ़सीह अकमल

हाए काफ़िर तिरे हमराह अदू आता है

फ़सीह अकमल

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