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ज़हीर रहमती

1968 | दिल्ली, भारत

ज़हीर रहमती

ग़ज़ल 9

अशआर 10

कुछ होते होते इक दिन ये हुआ

सैकड़ों सदियों का हासिल हो गए

ख़ुशी से अपना घर आबाद कर के

बहुत रोएँगे तुम को याद कर के

ज़र्द चेहरे को बड़े शौक़ से सब देखते हैं

टूटने वाले हैं सरसब्ज़ शजर से हम भी

जिस की कुछ ताबीर हो

ख़्वाब उसी को कहते हैं

सतही लोगों में गहराई होती है

ये डूबे तो पानी गहरा होता है

पुस्तकें 3

 

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