ज़हीर रहमती
ग़ज़ल 9
अशआर 10
कुछ न होते होते इक दिन ये हुआ
सैकड़ों सदियों का हासिल हो गए
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ख़ुशी से अपना घर आबाद कर के
बहुत रोएँगे तुम को याद कर के
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ज़र्द चेहरे को बड़े शौक़ से सब देखते हैं
टूटने वाले हैं सरसब्ज़ शजर से हम भी
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जिस की कुछ ताबीर न हो
ख़्वाब उसी को कहते हैं
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सतही लोगों में गहराई होती है
ये डूबे तो पानी गहरा होता है
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