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ज़ाहीदा हिना
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चित्र शायरी 1
जानती हूँ कि वो ख़फ़ा भी नहीं दिल किसी तौर मानता भी नहीं क्या वफ़ा ओ जफ़ा की बात करें दरमियाँ अब तो कुछ रहा भी नहीं दर्द वो भी सहा है तेरे लिए मेरी क़िस्मत में जो लिखा भी नहीं हर तमन्ना सराब बनती रही इन सराबों की इंतिहा भी नहीं हाँ चराग़ाँ की कैफ़ियत थी कभी अब तो पलकों पे इक दिया भी नहीं दिल को अब तक यक़ीन आ न सका यूँ नहीं है कि वो मिला भी नहीं वक़्त इतना गुज़र चुका है 'हिना' जाने वाले से अब गिला भी नहीं
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