ज़ीशान साहिल के शेर
मैं ज़िंदगी के सभी ग़म भुलाए बैठा हूँ
तुम्हारे इश्क़ से कितनी मुझे सहूलत है
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किस क़दर महदूद कर देता है ग़म इंसान को
ख़त्म कर देता है हर उम्मीद हर इम्कान को
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गुज़र गई है मगर रोज़ याद आती है
वो एक शाम जिसे भूलने की हसरत है
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खिड़की के रस्ते से लाया करता हूँ
मैं बाहर की दुनिया ख़ाली कमरे में
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कितने हैं लोग ख़ुद को जो खो कर उदास हैं
और कितने अपने-आप को पा कर भी ख़ुश नहीं
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जो हमें पा के भी खोने से बहुत पीछे था
हम उसे खो के भी पाने से बहुत आगे हैं
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वो दास्तान मुकम्मल करे तो अच्छा है
मुझे मिला है ज़रा सा सिरा कहानी का
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कोई आ के हमें ढूँडेगा तो खो जाएगा
हम नए ग़म में पुराने से बहुत आगे हैं
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बस एक रंग है दिल में किसी के होने से
अब अपने-आप को इस से भी सादा क्या करना
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अब तो ये शायद किसी भी काम आ सकता नहीं
आप ही ले जाइए मेरे दिल-ए-नादान को
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आया था मेरे पास वो कुछ देर के लिए
सूरज मगर गहन में बहुत देर तक रहा
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जो वो नहीं था तो मैं मुत्तफ़िक़ था लोगों से
वो मेरे सामने आया तो इख़्तिलाफ़ किया
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हवा बहार की आएगी और मैं चूमूँगा
वो सारे फूल कि जिन में तिरी शबाहत है
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