aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
पाकिस्तान
मैं जिसे हीर समझता था वो राँझा निकला
बात निय्यत की नहीं बात है बीनाई की
मुझे अपनी बीवी पे फ़ख़्र है मुझे अपने साले पे नाज़ है
नहीं दोश दोनों का इस में कुछ मुझे डाँटता कोई और है
मिरे रोब में तो वो आ गया मिरे सामने तो वो झुक गया
मुझे लात खा के हुई ख़बर मुझे पीटता कोई और है
वो भरी बज़्म में कहती है मुझे अंकल-जी
डिप्लोमेसी है ये कैसी मिरी हम-साई की
सर-ए-बज़्म मुझ को उठा दिया मुझे मार मार लिटा दिया
मुझे मारता कोई और है वले हाँफ्ता कोई और है
Aawaz-e-Jaras
1994
Chhed Khaniyan
Chhed-Khaniyan
1991
मुझे याद अाया
2002
Rag-e-Zarafat
2000
Reg-e-Sahil
Ziya Pashiyan
Shumara Number-002
1974
Shumara Number-012
1989
1995
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