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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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ज़िया अज़ीमाबादी

1880 - 1901

ज़िया अज़ीमाबादी

ग़ज़ल 1

 

अशआर 1

इक टीस जिगर में उठती है इक दर्द सा दिल में होता है

हम रात को रोया करते हैं जब सारा आलम सोता है

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