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ज़ुल्फ़ेक़ार अहमद ताबिश
अशआर 6
पेड़ों की घनी छाँव और चैत की हिद्दत थी
और ऐसे भटकने में अंजान सी लज़्ज़त थी
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ये दर-ओ-दीवार पर बे-नाम से चुप-चाप साए
फूलों रस्तों और बच्चों की हिफ़ाज़त चाहते हैं
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किस का चेहरा ढूँडा धूप और छाँव में
और ख़्वाबों में रंग भरे तो किस के लिए
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ये नक़्श-ए-ख़ुशनुमा दर-अस्ल नक़्श-ए-आजिज़ी है
कि अस्ल-ए-हुस्न तो अंदेशा-ए-बहज़ाद में है
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वो सानेहा हुआ था कि बस दिल दहल गए!
इक शब में सारे शहर के चेहरे बदल गए
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