बच्चों के खेल
बच्चे जब मिल बैठते हैं तो कोई न कोई खेल ज़रूर शुरू हो जाता है। ख़्वाह कोई मुल़्क हो या कोई मौसम, बच्चों को खेलने से बाज़ नहीं रखा जा सकता। कुछ खेल ऐसे होते हैं जो कमरों में खेले जाते हैं और कुछ मैदानी खेल होते हैं। आपने भी बहुत से खेल खेले होंगे। आपकी तफ़रीह के लिए कुछ और खेल बताए जाते हैं। हो सकता है कि ये आपके लिए बिलकुल नए हों। ऐसी सूरत में आप और आपके साथी बहुत लुत्फ़-अंदोज़ होंगे।
अंधा मदारी
ये खेल बहुत दिलचस्प और आसान है। घर के अंदर या बाहर खेला जा सकता है। यूरोप में बच्चे इस खेल को बहुत शौक़ से खेलते हैं।
इस खेल में एक बच्चे की आँखों पर पट्टी बाँध दी जाती है और उसके हाथ में एक डंडा थमा दिया जाता है, जिसे मदारी का डंडा कहा जाता है। बाक़ी सब बच्चे उंगलियाँ पकड़ कर मदारी के गिर्द हलक़ा बना कर नाचते हैं और कोई सा गीत गाते हैं। मदारी अपना डंडा किसी बच्चे की तरफ़ करता है तो वो बच्चा हलक़े के अंदर आ कर डंडे का दूसरा सिरा थाम लेता है। अब मदारी मुँह से तीन बार बकरी के मिमियाने, बिल्ली के म्याऊँ-म्याऊँ करने या कुत्ते के भौंकने की आवाज़ निकालता है, डंडे के दूसरे सिरे पर लड़का उस आवाज़ की नक़्ल उतारता है और मदारी अंदाज़ा लगाता है कि दूसरी तरफ़ कौन लड़का है। अगर उसका अंदाज़ा ठीक हो तो मदारी हलक़े में चला जाता है और दूसरा लड़का मदारी बन जाता है। नहीं तो बच्चे फिर हलक़े में नाचने और गाने लगते हैं और मदारी फिर किसी बच्चे को बुलाता है। हर बार मदारी मुख़्तलिफ़ जानवरों की आवाज़ें निकालता है। एक बात का ध्यान रखें कि डंडा ज़्यादा लंबा या नोकीला न हो क्योंकि मदारी की आँखें बंद होती हैं और ये डंडा किसी के मुँह या आँख पर लग सकता है।
अंधेरे में मछली पकड़ना
ये खेल चीन में बहुत खेला जाता है। हर बच्चा अपना नाम किसी मछली के नाम पर रख लेता है। अब एक खिलाड़ी को मछेरा चुन लिया जाता है और उसकी आँखों पर पट्टी बाँध दी जाती है।
मछेरा एक ही जगह पर खड़ा रहता है। उसके गिर्द अंधेरा समुंद्र है, जिसमें मुख़्तलिफ़ नामों की मछलियाँ तैर रही हैं। मछेरा खड़ा है। मछलियाँ आती हैं और उसे छू कर निकल जाती हैं। मछेरा उन्हें पकड़ने की कोशिश करता है। अगर कोई मछली उसके हाथ लग जाए तो वो उसका नाम पुकारता है। अगर मछली कहती है “ग़लत” तो वो उसे छोड़ देता है और फिर अंधेरे में टटोलने लगता है अगर मछली ठीक पकड़ी जाए तो मछली पट्टी बाँध कर मछेरा बन जाती है और मछेरा मछली बन कर अंधेरे समुंद्र में तैरने लगता है।
सोम-मंगल
ये मैदान खेल गेंद से खेला जाता है और बच्चों में बहुत चुसती पैदा करता है। इस खेल के लिए कम-अज़-कम सात बच्चे होने चाहिएँ। अगर बच्चे सात से ज़्यादा हों तो खेल का नाम सोम-मंगल की बजाय जनवरी-फ़रवरी हो जाता है। खेलने वाले बच्चों को, अगर वो सात हों तो हफ़्ते के साथ दिनों के नाम दिए जाते हैं। अगर सात से ज़्यादा हों तो महीनों के नाम दे दिए जाते हैं। अब सोम एक नर्म रबड़ की गेंद ले कर उसे सामने की दीवार पर फेंकता है और बाक़ी बचे उसके गिर्द गेंद को पकड़ने के लिए तैयार खड़े रहते हैं। लेकिन दीवार से टकरा कर आने वाली गेंद सिर्फ़ वही बच्चा दबोचेगा जिसका नाम सोम गेंद फेंकते वक़्त पुकारेगा। जिस लड़के का नाम लिया गया है अगर वो गेंद को पकड़ लेता है तो वो किसी और लड़के का नाम लेकर गेंद को दीवार से टकराएगा। अगर वो गेंद नहीं पकड़ सका तो सोम ही गेंद को पकड़ कर बाक़ी लड़कों में से, जो अब सब भाग गए होंगे, किसी एक को गेंद का निशाना बनाने की कोशिश करेगा। अगर वो किसी को निशाना बना लेता है तो सब लड़के वापस आ जाएँगे और फिर सोम किसी लड़के का नाम पुकार कर गेंद दीवार पर मारेगा। लेकिन अगर वो निशाना नहीं लगा सका तो वो गेंद छोड़ देगा और मंगल गेंद से खेल शुरू करेगा। जो बच्चा तीन बार गेंद का निशाना बन जाए वो आउट समझा जाएगा।
मुस्कुराहट
ये इंतिहाई पुर-लुत्फ़ खेल जर्मनी के बच्चों में बहुत मक़बूल है। इससे अजनबी बच्चे भी बहुत जल्द एक दूसरे के दोस्त बन जाते हैं। इस खेल में सब बच्चे एक दायरे में खड़े हो जाते हैं। या बैठ जाते हैं। वो सब निहायत संजीदा और गंभीर शक्लें बना लेते हैं। अब एक खिलाड़ी मुस्कुराना शुरू कर देता है। कुछ देर बाद वो अपने मुँह पर हाथ फेर कर मुस्कुराहट उतारता है और अपने सामने बैठे हुए किसी खिलाड़ी के मुँह पर दे मारता है। वो ख़ुद संजीदा हो जाता है। अब जिस बच्चे पर मुस्कुराहट फेंकी गई है उसका फ़र्ज़ है कि वो मुस्कुराने लगे और कुछ देर बाद चेहरे से मुस्कुराहट उतार कर किसी और बच्चे की तरफ़ फेंक दे और ये सिलसिला उस वक़्त तक चलता है जब तक सिर्फ़ एक खिलाड़ी बाक़ी रह जाए। इस खेल का ज़रूरी उसूल ये है कि सिर्फ़ वही खिलाड़ी मुस्कुराए जिसकी तरफ़ मुस्कुराहट फेंकी जाए। अगर कोई और खिलाड़ी हँसे या मुस्कुराएगा तो उसे दायरे से ख़ारिज कर दिया जाएगा। इस में बच्चों के लिए हंसी ज़ब्त करना और उसी दम संजीदा हो जाना बहुत मुश्किल बात है और देखने वाले भी इस खेल से ख़ूब लुत्फ़ उठाते हैं।
हंसी का खेल
इस खेल में कमरे के दरमियान एक पर्दा लटका दिया जाता है। बच्चे दो बराबर की टोलियाँ बना लेते हैं। एक टोली पर्दे के एक तरफ़ और दूसरी पर्दे के दूसरी तरफ़ खड़ी हो जाती है। एक टोली का हर खिलाड़ी बारी-बारी ज़ोर से हँसता है। अगर पर्दे के दूसरी तरफ़ के बच्चे उस को पहचान लें तो वो बच्चा भी उनकी तरफ़ चला जाता है, न पहचान सकें तो उससे अगला बच्चा हँसता है। इस तरह एक टोली हँसती और दूसरी पहचानती है। बच्चे मस्नूई हंसी हँसने की कोशिश करते हैं। टोलियों के बच्चे इस तरह कम और बढ़ते रहते हैं जो टोली दूसरी तरफ़ के सब बच्चों को साथ मिला ले वो जीत जाती है। इस खेल में बच्चे एक दूसरे को बहुत अच्छी तरह पहचान जाते हैं। इस खेल का नाम है “कौन हँसा?”
चूहा-बिल्ली
ये एक आसान और पुर-लुत्फ़ खेल है जिसे छोटे बच्चे बड़ी दिलचस्पी से खेलते हैं। इस खेल में बच्चे दो बराबर की टोलियों में बट कर आमने-सामने बैठ जाते हैं। बीच में काफ़ी जगह खुली रह जाती है। अब दोनों टोलियों में से एक-एक बच्चा बीच में आ जाता है। दोनों की आँखों पर पट्टी बाँध दी जाती है। एक बच्चा चूहा होता है और दूसरा बिल्ली। बिल्ली एक सिरे से और चूहा दूसरे सिरे से चलता है। बिल्ली का काम चूहे को पकड़ना है दोनों टोलियाँ अपने साथी को बताती जाती हैं कि वो दाहिनी तरफ़ हो जाएगी, आगे हो जाएगी या बाएँ तरफ़ हो जाएगी, ताकि वो बिल्ली के हाथ से बच सके और बिल्ली उसे पकड़ न सके। ख़ूब जोश-ओ-ख़रोश का मुज़ाहरा होता है। अगर बिल्ली चूहे को पकड़ ले तो मुख़ालिफ़ पार्टी का एक रुक्न कम हो जाता है और वो एक और चूहा पेश करती है। अगर बिल्ली हार जाए तो जीतने वाली पार्टी बिल्ली और हारने वाली पार्टी चूहा भेजती है। इस तरह ये दिलचस्प खेल काफ़ी देर तक चलता है।
रीछ आया
ये स्कॉट-लैंड का एक दिलचस्प खेल है जिसे खुले मैदान या मकान में खेला जाता है जहाँ छिपने के लिए काफ़ी जगह हो। इस खेल में एक बच्चे को रीछ बनाया जाता है। उसे कहीं छुप जाने की इजाज़त है। बाक़ी बच्चे उसकी तरफ़ नहीं देखते। पचास या सौ तक गिनती के बाद सब बच्चे अपने घर से रीछ को तलाश करने निकलते हैं। जो बच्चा पहले कहीं रीछ को देख लेता है वो शोर मचा देता है, “रीछ आया, रीछ आया” और सब बच्चे घर की तरफ़ भागते हैं। रीछ उनका पीछा करता है। जो बच्चा घर न लौट सके और पकड़ा जाए वो भी रीछ बन जाता है। अब दो रीछ छुपने जाते हैं और बाक़ी बच्चे उन्हें तलाश करते हैं। इस तरह रीछों की तादाद बढ़ती जाती है। कई बार सिर्फ़ एक बच्चा ही तलाश करने वाला रह जाता है और सब रीछ उसे घेर लेते हैं। ये ज़रूरी नहीं कि सब रीछ ही पीछा करने के लिए निकलें। अगर थोड़े बच्चे रह जाएँ तो रीछ भी थोड़े ही बाहर निकलते हैं। जब कोई बच्चा न रहे तो सब रीछ अपनी पनाह गाहों से बाहर निकलते हैं और खेल दोबारा शुरू हो जाता है। शर्त ये है कि बच्चे एक ही बार में थक न गए हों, क्यों कि इस खेल में बहुत वरज़िश होती है और बच्चे इतने थक जाते हैं कि उनमें “रीछ आया, रीछ आया” की आवाज़ें लगाने का दम भी बाक़ी नहीं रहता।
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