बेवक़ूफ़ भेड़िया
एक गधा किसी हरे-भरे खेत में चर रहा था कि कहीं से एक भूका भेड़िया उधर आ निकला। भेड़िए ने ग़ुर्राते हुए गधे को डाँटा, “चल, इधर आ, मेरे नाशते का सामान बन, सुबह से भूका फिर रहा हूँ और तू ये हरी-हरी घास उड़ा रहा है।”
गधे को चालाकी सूझी, उसने लंगड़ाते हुए चंद क़दम बढ़ाए और बड़े ज़ोर से हाय की, “ओह-ओह जनाब भेड़िए साहब आप मुझे खा तो ज़रूर लेना मगर मेहरबानी कर के मेरे खुर में से ये कील तो निकाल दीजिए, शदीद तकलीफ़ हो रही है। हाय मैं मरा हाय...”
भेड़िए ने कहा, “भला मुझे क्या ज़रूरत है कि मैं तुम पर रहम करूँ।”
गधे ने कहा, “जनाब आपके भले के लिए कह रहा हूँ, फ़र्ज़ कीजिए आप मुझे खाना शुरू कर देते हैं और अगर ये कील आपके हल्क़ में अटक गई तो?”
भेड़िए ने ज़रा फ़िक्रमंदी से सोचा कि गधा कहता तो वाक़ई ठीक है, जब ये छोटी सी कील इसके पाँव में इतनी तकलीफ़ दे रही है और ख़ुदा-ना-ख़्वास्ता अगर मेरे हल्क़ में अटक गई तो मेरे हल्क़ का क्या हश्र होगा? मैं तो मुफ़्त में मारा जाऊँगा, चलो ठीक है, इसकी कील निकाल कर ही खाऊँ तो अच्छा रहेगा।
“लाओ अपना पाँव।” भेड़िए ने गधे से कहा। गधे ने फ़ौरन अपना एक पैर ज़रा ऊपर उठा लिया।
भेड़िए ने कहा, “बताओ कहाँ है कील, मुझे नज़र नहीं आ रही।”
गधे ने फिर एक बार हाय कहा, “ज़रा क़रीब आ कर ग़ौर से देखिए जनाब, हाय मैं मरा।”
जैसे ही भेड़िया कील देखने के लिए और क़रीब आया तो गधे ने अपने दूसरे पाँव से भेड़िए के मुँह पर पूरी ताक़त से लात जमा दी। लात इतने ज़ोर से लगी कि भेड़िया दूर जा गिरा और उसके सारे दाँत टूट गए और वो बुरी तरह ज़ख़्मी हो गया। अब वो भला गधे को क्या ख़ाक खाता। भेड़िया दर्द के मारे तड़पने लगा और अपने दिल में कहा कि, “अफ़सोस इस गधे के धोके में मारा गया, मैं कोई डॉक्टर तो हूँ नहीं जो इसकी कील निकाल देता, सद-अफ़्सोस, अपने दाँत ही गंवा बैठा।”
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