दो दोस्त दो दुश्मन
घने जंगल में एक दलदल के क़रीब बरसों से एक चूहा और एक मेंढक रहते थे। बातचीत के दौरान एक दिन मेंढक ने चूहे से कहा, “इस दलदल में मेरा ख़ानदान सदियों से आबाद है और इसीलिए ये दलदल जो मुझे बाप-दादा से मिली है, मेरी मीरास है।”
चूहा इस बात पर चिड़ गया। उसने कहा, “मेरा ख़ानदान भी यहाँ सैंकड़ों सालों से आबाद है और मुझे भी ये जगह अपने बाप-दादा से मिली है और ये मेरी मीरास है।”
ये सुन कर मेंढक ग़ुस्से में आ गया और तू-तू मैं-मैं शुरू हो गई। बात इतनी बढ़ी कि उनकी दोस्ती में फ़र्क़ आ गया और दोनों ने एक दूसरे से बोलना छोड़ दिया।
एक दिन चूहा वहाँ से गुज़रा तो मेंढक ने उस पर आवाज़ किसी जो चूहे को बहुत बुरी लगी। इसके बाद चूहे ने ये किया कि वो घास में छिप कर बैठ जाता और जब मेंढक वहाँ से गुज़रता तो उस पर हमला कर देता।
आख़िर तंग आकर एक दिन मेंढक ने कहा “ऐ चूहे तू चोरों की तरह ये क्या छुप-छुप कर हमला करता है? मर्द है तो सामने मैदान में आ, ताकि खुल कर मुक़ाबला हो और तुझे मेरी क़ुव्वत का पता चले।”
चूहे ने ये बात क़ुबूल कर ली और दूसरे दिन सुबह ही सुबह मुक़ाबले का वक़्त मुक़र्रर हुआ। मुक़र्ररा वक़्त पर एक तरफ़ से चूहा निकला। उसके हाथ में नर्सल के पौदे का एक लंबा तिनका था। दूसरी तरफ़ से मेंढक आगे बढ़ा। उसके हाथ में भी ऐसा ही तिनका था। दोनों ने एक दूसरे पर ज़बरदस्त हमला किया और फिर ज़रा सी देर में दोनों गुत्थम-गुत्था हो गए।
अभी ये लड़ाई जारी थी कि दूर हवा में उड़ती हुई एक चील ने देखा कि एक चूहा और एक मेंढक आपस में गुत्थम-गुत्था हो रहे हैं। वो तेज़ी से उड़ती हुई नीचे आई और एक झपटे में दोनों पहलवानों को अपने तेज़, नोकीले पंजों में दबा कर ले गई।
अब वहाँ चूहा है न मेंढक... दलदल अब भी मौजूद है।
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