गुलमोहर का दरख़्त
ख़ालिद को आता देख कर रहीम चाचा अपनी नर्सरी के दरवाज़े पर उगे गुल-मोहर के साया-दार दरख़्त के पास रखी कुर्सी पर बैठ गए। ख़ालिद जब नज़दीक आया तो उसके हाथ में अनार का एक पौदा था। गुज़िश्ता शाम ही वो पौदा उन्होंने ख़ालिद को दिया था।
“किस चीज़ का पौदा है चाचा?”, “ख़ालिद ने मासूमियत से पूछा था।”
“अनार का।” रहीम चाचा ने उसके गाल पर थपकी देते हुए बताया था।
“तुम्हारे घर के दरवाज़े के सामने काफ़ी जगह ख़ाली है, किसी एक जगह इस पौदे को लगा देना। पौदा बड़ा हो कर अनार के मीठे फल देगा और दरवाज़े पर हरियाली भी रहेगी।”
“ख़ालिद पौदा ले कर बहुत ख़ुश था। लेकिन अगले ही दिन पौदा वापिस ले कर क्यों आ गया?”
रहीम चाचा सोच में पड़ गए थे।
“क्या हुआ ख़ालिद पौदा पसंद नहीं आया?”
“पौदा तो पसंद है चाचा, पर अब्बू ने कहा कि बड़े बुज़ुर्ग का कहना है कि अनार का दरख़्त घर में या आस-पास नहीं लगाना चाहिए। उस पर जिनों का साया होता है।”
ख़ालिद ने तफ़सील बताई। ख़ालिद की बातें सुन कर रहीम चाचा ने अपना सर पकड़ लिया और बोले,
“बेटा ख़ालिद, मेरी निगाह में तुम्हारे अब्बू पढ़े-लिखे नादान हैं।” एक लम्हे के लिए रुक कर वो फिर बोले अगर कोई शख़्स लोगों की कही-सुनी बातों को बग़ैर समझे-बूझे मान लेता है मैं उसे पढ़ा-लिखा बेवक़ूफ़ समझता हूँ। ”ख़ालिद ख़ामोशी से रहीम चाचा की बात सुनता रहा।
“तुम ही बताओ अगर अनार के दरख़्त पर जिनों का साया होता तो लोग आँगन, बाग़-बाग़ीचा में भी नहीं लगाते। फिर ये फल बाज़ारों में किस तरह आता और लोग जूस वाले की दुकान पर इसका रस कैसे पीते जो सेहत के लिए मुफ़ीद और मुक़व्वी भी है।” रहीम चाचा ने फ़ायदा बताने की कोशिश की। ख़ालिद ने उनकी ताईद की।
“सच ये है कि अनार का पौदा जब दरख़्त बनेगा तो इसमें फल आएँगे। जब फल से लदा दरख़्त आने-जाने वालों को मुतास्सिर करेगा तो लालच में उसे तोड़ने की कोशिश करेंगे। मेरी बात सही है?”
“जी चाचा।” ख़ालिद ने हामी भरी।
“अब उसकी रखवाली और हिफ़ाज़त के लिए वक़्त देना होगा, यानी तुम्हारे अब्बू की नज़र में ये बे-मतलब का काम हो गया।”
“जी।” ख़ालिद ने ताईद की।
“एक और अहम बात... कुछ दरख़्तों की डालियाँ कमज़ोर होती हैं, उनमें अनार का दरख़्त भी शामिल है। ख़ुदा-न-ख़्वासता कोई शरीर बच्चा फल तोड़ने की ग़रज़ से दरख़्त पर चढ़ने की कोशिश करेगा तो मुम्किन है डाली टूट जाए और बच्चा ज़मीन पर गिर कर ज़ख़्मी हो सकता है। इसी वजह से बुज़ुर्गों ने इस दरख़्त के मुताल्लिक़ डर पैदा करने के वास्ते ये बात फैला दी कि दरख़्त पर जिनों का साया होता है। भला जिन भी तो अल्लाह की बनाई मख़लूक़ है, वो दरख़्त पर क्यों रहेगी।”
“शायद आप दुरुस्त फ़र्मा रहे हैं।” ख़ालिद ने संजीदा लहजे में कहा।
“अब ये अनार का पौदा तुम मुझे लौटा दो और इसके बदले गुल-मोहर का ये पौदा ले जाओ और अपने अब्बू की इजाज़त से अपने दरवाज़े के बाहर ज़रूर लगा देना। जब ये पौदा दरख़्त बनेगा तो घना साया देगा और ख़ूबसूरत रंगों के फूल भी।” रहीम चाचा ने गुल-मोहर का पौदा ख़ालिद को देते हुए कहा।
ख़ालिद ने पौदा ले लिया और जाने लगा। तभी रहीम चाचा ने उसे मुख़ातब किया,
“अपने अब्बू को ये ज़रूर बता देना कि प्यारे नबी ने शजर-कारी (पौदे लगाने) की ता'लीम दी है।” उन्होंने फ़रमाया,
“अगर क़ियामत आने वाली है और किसी ने उस वक़्त खजूर का एक पौदा भी लगा दिया तो अल्लाह ताला उसका अज्र देगा।” (मस्नद अहमद)
“ख़ालिद, मेरे बच्चे, पौदे दरख़्त बन कर फल और साया दोनों देते हैं। ये हमारे माहौलियाती निज़ाम को भी साफ़-सुथरा रखते हैं। फ़िज़ा में आलूदगी इन्हीं की वजह से नहीं फैलती। तुमने तो साईंस में ज़रूर पढ़ा होगा?”
“जी चाचा।” कहते हुए ख़ालिद तेज़-तेज़ क़दम बढ़ाता अपने घर की तरफ़ लौट गया।
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.