बहुत पुराने ज़माने की बात है कि एक छोटी सी पहाड़ी के दामन में मियां बीवी रहते थे जो बहुत ही बूढ़े थे। उनका मकान दिहात से ज़रा अलग-थलग था। उनकी कोई औलाद नहीं थी। दूध के लिए एक गाय रखी हुई थी। ज़रूरत के मुताबिक़ अनाज और सब्ज़ी उगा लेते थे और अपने बाग़ीचे में उन्होंने अंगूर की बेलें भी लगाई हुई थीं। उनकी ये एक बड़ी अच्छी आदत थी कि उनके हाँ कोई भूका भटका और थका हारा मुसाफ़िर आजाता तो वो उस की बड़ी ख़िदमत करते और ख़ुश होते मगर उनके हम-साए दिहात के लोग मुसाफ़िरों से बहुत बुरा सुलूक करते थे। जब कोई ग़रीब मुसाफ़िर गांव से गुज़रता तो वो अपने कुत्ते उस पर छोड़ देते, बच्चे घरों से निकल आते और पत्थर फेंकते। मुसाफ़िर की इस बेकसी पर गांव के लोग ख़ुश होते और तालियाँ बजाते। फिर जो कुछ मुसाफ़िर के पास होता, लूट लेते। जो लोग इस दिहात के रहने वालों की बुरी आदत से वाक़िफ़ थे वो मीलों का चक्कर काट लेना बेहतर समझते मगर उस गांव के रास्ते से ना गुज़रते थे। उस गांव के लोग और बच्चे अलबत्ता उस वक़्त बड़े शरीफ़ और मुहज़्ज़ब नज़र आते जब उनके गांव से कोई ज़रक़-बरक़ लिबास पहने कोई अमीर आदमी गुज़रता। वो उसे सलाम करते। इस मौके़ पर उनके कुत्ते भी ख़ामोश हो जाते। मियाँ बीवी ने उन लोगों को बहतेरी दफ़ा समझाया कि मुसाफ़िरों से इस बुरी तरह पेश नहीं आना चाहिए जिस तरह तुम पेश आते हो। लेकिन शरीर लोग कभी उनकी बात ना सुनते। मियाँ बीवी को उनकी हालत पर बड़ा अफ़सोस होता कि ये ख़ुद तो बिगड़े हुए हैं, अपने बच्चों को भी बिगाड़ रहे हैं।
एक दिन मियाँ बीवी रात का खाना खा कर सोने से पहले तफ़रीह के तौर पर अपने मकान के बाहर बैठे हुए अपनी गाय और अंगूर की बेलों की बातें कर रहे थे कि उनके कानों में कुत्तों के ज़ोर ज़ोर से भूँकने और बच्चों के चिल्लाने की आवाज़ें आईं। इस से उनकी बातों का सिलसिला रुक गया और मियाँ बीवी से कहने लगा ‘‘आह मालूम होता है गांव से कोई मुसाफ़िर गुज़र रहा है जभी तो कुत्तों और बच्चों का शोर सुनाई दे रहा है, कैसे बद-बख़्त लोग हैं, मुसाफ़िर को कुछ खिलाने पिलाने की बजाय वो उन पर कुत्ते छोड़ देते हैं और बच्चे पत्थर बरसाना शुरू कर देते हैं।’’ बीवी ने अफ़सोस करते हुए जवाब दिया। ‘‘हाँ शरीर लोगों ने फिर शैतानी खेल शुरू कर दिया है।’’ बूढ़े ने सर हिलाते हुए गहरा सांस लिया और कहा। ‘‘मैं डरता हूँ, कहीं उस गांव के लोग किसी बड़े अज़ाब का शिकार ना हूँ। ख़ैर जब तक हम तुम ज़िंदा हैं, मुसाफ़िरों की ख़िदमत करते ही रहेंगे। कुत्तों और बच्चों का शोर नज़दीक से नज़दीक-तर होता गया और मुसाफ़िर आगे बढ़ते गए। उनमें से छोटे क़द का मुसाफ़िर बड़ा होशियार था। जब कुत्ते उस के नज़दीक पहुंचते तो वो अपने डंडे से उन्हें डराता। दूसरा मुसाफ़िर लंबे क़द का था। वो बड़ी लापरवाई से चल रहा था, बूढ़े ने बीवी से कहा। ‘‘आओ हम उन मुसाफ़िरों को अपने मकान में ले आएं उनको इस वक़्त मदद की बड़ी ज़रूरत होगी।’’ नेक दिल बीवी ने कहा। ‘‘आप अकेले जाईए, में इतने में उनके खाने का कोई इंतिज़ाम करती हूँ।’’ बूढ़ा बाहर चला गया और आगे बढ़कर उनको ख़ुश-आमदीद कहा इस पर छोटे क़द के मुसाफ़िर ने बूढ़े का शुक्रिया अदा किया और अच्छा सुलूक देखा तो पूछा ‘‘बाबा आप ऐसे बुरे हमसाइयों में किस तरह ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं।’’ बूढ़े ने जवाब दिया कि शायद मुझे क़ुदरत ने इसी लिए इस जगह आबाद की है कि मैं अपने हमसाइयों के बुरे सुलूक के बदले मुसाफ़िरों से अच्छी तरह पेश आऊँ। ये कहते कहते बूढ़ा उन मुसाफ़िरों को अपने मकान में ले आया जहां वो एक बेंच पर बैठ गए। दिन-भर चलने से वो थके हुए और भूक से निढाल नज़र आते थे। बूढ़ा मकान के अंदर गया और बीवी से खाना लाने के लिए कहा। मुसाफ़िरों के सामने रोटी, थोड़ा सा मक्खन, दूध का एक बर्तन और अंगूरों का एक गुच्छा रख दिया गया जिसे देखकर वो कहने लगे कि ये तो अच्छी ख़ासी दावत हो गई, मगर बड़ी-बी ने अफ़सोस किया कि वो ऐसे वक़्त आए हैं कि रात का खाना वो खा चुके हैं, उन्हें अगर इस बात का इल्म होता कि कोई मुसाफ़िर आ रहा है तो वो रात को खाना ही ना खाते। मुसाफ़िरों ने हंसकर जवाब दिया। नहीं बड़ी-बी, ये बहुत काफ़ी खाना है, आप फ़िक्र ना करें और दूध के लिए अपने प्याले बढ़ा दिए। बड़ी-बी ने पियालों में दूध डाला तो बर्तन ख़ाली हो गया। मुसाफ़िर जो प्यासे थे, एक ही सांस में सारा दूध पी गए और कहा कि बहुत ही उम्दा दूध है। फिर दुबारा प्याले दूध के लिए आगे कर दिए। बड़ी-बी घबराई कि अब क्या करूँ, बर्तन में एक घूँट भी बाक़ी नहीं। मुसाफ़िरों ने घबराहट देखी तो छोटे क़द का मुसाफ़िर उठा और बर्तन को ख़ुद झुका कर दोनों प्याले दूध से पुर कर लिए और बड़े मज़े से पी गए। मियाँ बीवी ये देखकर हैरान हो गए कि ये कोई मामूली मुसाफ़िर नहीं हैं, क्योंकि बर्तन में दूध का एक घूँट भी नहीं था और उन्होंने ख़ाली बर्तन से दूध निकाल लिया था। इस तरह जिस खाने को भी वो हाथ लगाते कम होने की बजाय बढ़ता ही जाता। खाने के दौरान में बातें भी हो रही थीं। मुसाफ़िरों ने पूछा कि बाबा उस जगह जहां अब गांव आबाद है, कोई झील भी थी। बूढ़े ने जवाब दिया। ‘‘हाँ थी मगर वो सैंकड़ों बरस की बात है।’’ फिर गांव के लोगों की बुरी आदतों की बातें शुरू हो गईं और लंबे क़द के अजनबी ने कहा कि जब इस दिहात के लोगों को इन्सानों से कोई हमदर्दी नहीं तो इस जगह पर झील होनी चाहिए ना कि ये ज़ालिम लोग, और ये कहते कहते उसने तेज़ नज़रों से दिहात की तरफ़ देखा। बूढ़े ने कहा कि मैं सुब्ह इस दिहात के लोगों को समझाऊँगा कि वो अपनी आदतों से बाज़ आजाऐं मगर अजनबी ने कहा कि बाबा वो तुम्हें सुब्ह कहाँ मिलेंगे। मुझे दिखाओ वो गांव है कहाँ। दोनों मियाँ बीवी जब बाहर निकल कर देखने लगे तो जहाँ वो कल तक दिहात और चरागाह देखते थे, अब उन्हें वहाँ एक झील नज़र आई, उन्हें अपने आप पर ए’तबार ना आया। बड़े मियाँ की परेशानी देखकर लंबे क़द के मुसाफ़िर ने गरजदार आवाज़ में कहा ‘‘इतने बुरे लोगों का दुनिया में रहने का कोई फ़ायदा ना था। वो सब इस झील में मछलियाँ बन गए हैं। छोटे क़द के मुसाफ़िर ने मज़ाक़ करते हुए बड़े मियाँ से कहा ‘‘देखो जब भूक लगे तो इस झील से ज़याफ़त उड़ाने के लिए मछलियाँ पकड़ लेना। ऐसे लोगों की यही सज़ा थी। तुम लोग इन्सानों से मेहरबानी का सुलूक करते रहे हो इसलिए तुम्हारे दूध और खाने में हमेशा बरकत रहेगी इस बर्तन से कभी दूध ख़त्म नहीं होगा। मुसाफ़िर आते रहेंगे और तुम उनकी ख़िदमत करते रहोगे मियाँ बीवी अभी अपने मेहमानों का शुक्रिया ही अदा करने लगे थे कि वो ग़ायब हो गए। दोनों एक दूसरे का मुँह देखते रह गए। इस के बाद जब तक वो जीते रहे, उनके बर्तन में दूध कभी ख़त्म ना हुआ, मुसाफ़िर आते थे, दूध पीते थे, खाना खाते थे लेकिन उनके बर्तन का दूध ख़त्म हुआ ना खाना।
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.