Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

कछवा और मेंढक

शकीलुर्रहमान

कछवा और मेंढक

शकीलुर्रहमान

MORE BYशकीलुर्रहमान

    एक था कछुआ। अक्सर समुंदर से निकल कर रेत पर बैठ जाता और सोचने लगता दुनिया भर की बातें, समुंदर के तमाम कछुए उसे अपना गुरु मानते थे इसलिए कि वो हमेशा अच्छे और मुनासिब मश्वरे दिया करता था। मसलन रेत पर अंडे देने के लिए कौन सी जगह मुनासिब होगी, उमूमन दुश्मन अंडों को तोड़ दिया करते थे इसलिए इस बुज़ुर्ग कछुए की राय लेना ज़रूरी समझा जाता था। गुरु ने अंडे देने के लिए जो जगह बताई वहाँ कोई दुश्मन कभी नहीं पहुँच सका, फिर गुरु जी समुंदर की लहरों को देख कर अंदाज़ा लगा लेते थे कि समुंदरी तूफ़ान कब आएगा, समुंदर की लहरें कितनी तेज़ हो सकती हैं।

    तमाम कछुए अपने बाल बच्चों को लेकर साहिल के क़रीब किस मुक़ाम पर रहें। तूफ़ान कितनी देर रहेगा, ये समझो बच्चो ज़हीन, दूर अंदेश, फ़लसफ़ी क़िस्म का कछुआ था वो।

    एक सुबह समुंदर से निकल कर वो कछुआ रेत पर बैठा सोच रहा था, हम तो समुंदर और रेत पर रहते हैं, पास ही जो बस्ती है वहाँ लोग किस तरह रहते होंगे। सोचते-सोचते उसकी ख़्वाहिश हुई कि वो बस्ती की तरफ़ जाए और अपनी आँखों से वहाँ का हाल देखे। तुम तो जानते ही हो कि कछुए की चाल कैसी होती है, बहुत ही आहिस्ता-आहिस्ता चलता है ना वो। अपनी ख़ास चाल से आहिस्ता-आहिस्ता चला और पहुँच गया बस्ती में।

    बस्ती में पहुँचते ही उसे एक आवाज़ सुनाई दी, ‘छप-छप’ फिर ये आवाज़ बंद हो गई, थोड़ी देर बाद फिर वही आवाज़ सुनाई दी, ‘छप-छप’ फिर ये आवाज़ रुक गई। कछुए को यक़ीन गया कि ये पानी की आवाज़ है। कहीं क़रीब ही पानी में कोई चीज़ उछल रही है। फिर आवाज़ आई, ‘छप-छप’ कछुए की समझ में ये बात गई कि पानी की आवाज़ बहुत पास से रही है और उसमें कोई जानवर उछल रहा है। वो आहिस्ता-आहिस्ता अपनी ख़ास चाल से उस जानिब चला कि जहाँ से आवाज़ रही थी और पहुँच गया एक कुँएँ के पास। अंदर झाँक कर देखा तो वहाँ पानी नज़र आया। पानी में आवाज़ एक मेंढक की उछल-कूद से हो रही थी। मेंढक फिर उछला और आवाज़ आई, ‘छप-छप।’

    कछुए ने पूछा, “भाई मेंढक, बड़े ख़ुश नज़र रहे हो, बात क्या है, ख़ूब उछल रहे हो कुँएँ के पानी में?”

    मेंढक ने जवाब दिया, “मैं हमेशा ख़ुश रहता हूँ और कुँएँ के पानी में इसी तरह उछलता रहता हूँ।”

    कछुए ने कुछ सोचते हुए कहा, “कुँआँ गहरा तो है लेकिन तुम अंदर नहीं जा सकते।”

    “भला मैं अंदर क्यों जाऊँ, गहराई में तो मेरा दम घुट जाएगा मेंढक ने जवाब दिया।”

    “तुम सिर्फ़ उसकी सतह ही पर उछल कूद कर सकते हो।” कछुए ने कहा।

    “हाँ इस पानी में मुझे इसी तरह छपाक-छपाक करते हुए अच्छा लगता है।”

    “और पानी तो ईंटों की दीवारों से घिरा हुआ है, तुम ईंटों के दरमयान बंद हो।”

    “कमाल करते हो भाई अगर कुँएँ के गिर्द दीवार हो तो पानी बह जाएगा और मैं भी बह जाऊँगा फिर कुँआँ कहाँ रहेगा।” मेंढक ने कहा।

    “वही तो मैं सोच रहा हूँ।” फ़लसफ़ी कछुए ने कुछ कहना चाहा लेकिन ख़ामोश रहा।

    “क्या सोच रहे हो भाई, इस कुँएँ में तुम समा नहीं सकते यही सोच रहे हो ना... मेरी क़िस्मत पर रश्क रहा है तुम्हें।” मेंढक ने तंज़िया अंदाज़ में कहा।

    “नहीं मेंढक जी, मैं तो ये सोच रहा हूँ कि तुम कुँएँ के मेंढक हो और हमेशा कुँएँ के मेंढक ही बने रहोगे, तुमने समुंदर नहीं देखा, समुंदर देखोगे ना तो इल्म होगा कि पानी क्या होता है।” कछुए ने अपनी बात समझाई।

    “समुंदर क्या होता है?” मेंढक ने पूछा।

    “समुंदर पानी का एक बहुत बड़ा, बहुत ही बड़ा और बहुत ही बड़ा कुँआँ होता है जो दीवारों के दरमयान नहीं होता। उसके गिर्द कोई दीवार नहीं होती ईंटों-पत्थरों की कोई दीवार नहीं होती। जहाँ तक देखोगे ना पानी ही पानी नज़र आएगा। समुंदर ने सारी दुनिया को घेर रखा है। हम समुंदर ही में रहते हैं। तुम वहाँ नहीं रह सकते।”

    “क्यों नहीं रह सकते भला?” मेंढक ने दरयाफ़्त किया।

    “इसलिए कि तुम उसके बहाव में बह जाओगे और तुम्हारी ख़बर ता-क़यामत किसी को नहीं मिलेगी। हाँ एक बात हो सकती है।” फ़लसफ़ी कछुए ने सोचते हुए कहा...

    “क्या? कौन सी बात?” मेंढक ने पूछा।

    “ये हो सकता है कि तुम कुँएँ से निकल कर मेरे साथ समुंदर की तरफ़ चलो, देखो समुंदर क्या है, उसकी लहरें कैसी हैं, हम कछुए वहाँ किस तरह रहते हैं।”

    “नहीं भाई, मैं तो इसी कुँएँ में ख़ुश हूँ। मैं नहीं जाता समुंदर-वमुंदर देखने, तुम्ही को मुबारक हो समुंदर।”

    “तो तुम ज़िंदगी भर फिर कुँएँ के मेंढक ही बने रहोगे।” कछुए ने ग़ैरत दिलाई...

    “यही मेरी तक़दीर है तो मैं क्या करूँ?” मेंढक ने जवाब दिया, उसके लहजे में उदासी थी।

    “देखो तक़दीर-वक़दीर कोई चीज़ नहीं होती। हम अपनी तक़दीर ख़ुद बनाते हैं, तुम चाहो तो ख़ुद अपनी तक़दीर बना सकते हो।” कछुए ने समझाने की कोशिश की।

    “भला किस तरह? तुम तो कहते हो कि मैं समुंदर में जाऊँगा तो पानी में बह जाऊँगा, मेरा अता-पता भी होगा।”

    “ये तो सच्ची बात है लेकिन तुम समुंदर के अंदर नहीं उसके पास रह सकते हो, जिस तरह दूसरे सैंकड़ों-हज़ारों मेंढक रहते हैं। वहाँ बड़े-बड़े मेंढक भी होते हैं और छोटे-छोटे भी तुम्हारी तरह, समुंदर के किनारे कई मुक़ामात पर पानी जमा रहता है कि जिसमें मेंढक रहते हैं। वहाँ रह कर समुंदर का नज़्ज़ारा भी करते हैं, निकलते हुए ख़ूबसूरत सूरज को भी देखते हैं, डूबते हुए प्यारे सूरज का मंज़र भी देखते हैं, सूरज की ख़ूबसूरत रौशनी को लहरों पर देख कर उछलते हैं, ख़ुश होते हैं, तुमसे ज़्यादा छपाक-छपाक छप-छप करते हैं। उनके बाल बच्चे हैं जो खिलखिला कर हंसते हैं। रात में चाँदनी का मज़ा लूटते हैं, उन्हें साहिल की ठंडी हवाएँ मिलती हैं, वहाँ उनकी ग़िज़ा का भी इंतिज़ाम है। तुम्हें इस कुँएँ में क्या मिलता है। बाहर निकल कर तो देखो दुनिया कितनी ख़ूबसूरत और कितनी प्यारी है, हवाओं में दरख़्त किस तरह झूमते हैं, समुंदर की लहरें किस तरह उठती हैं, कैसी कैसी ख़ूबसूरत मछलियाँ साहिल तक आती हैं। तुम तो कुँएँ के अंदर बंद हो दुनिया से अलग, मेरे साथ चल कर देख लो अगर समुंदरी इलाक़ा तुम्हें पसंद आए तो वहीं रह जाना और पसंद आए तो वापस जाना और बन जाना कुँएँ का मेंढक। मैं तो तुम्हें दुनिया और इसकी ख़ूबसूरती दिखाना चाहता हूँ। तुमने कुँएँ के अंदर रह कर भला देखा क्या है, कुछ भी तो नहीं। बोलो चलोगे मेरे साथ समुंदर की तरफ़ या यहाँ रहोगे कुँएँ का मेंढक बन कर?” कछुए ने साफ़ जवाब तलब किया।

    मेंढक सोचने लगा ये तो सच है कि मैंने दुनिया को नहीं देखा है इसी कुँएँ में जन्म लिया और इसी में उछल कूद कर रहा हूँ, दुनिया और इसकी ख़ूबसूरती को देख लेने में मज़ायक़ा क्या है।

    “चलो तुम्हारे साथ चलता हूँ। जगह पसंद आई तो वापस जाऊँगा।” मेंढक ने कहा।

    “ठीक है ऐसा ही करना लेकिन मुझे यक़ीन है कि तुम्हें समुंदर की आज़ाद फ़िज़ा और दुनिया की ख़ूबसूरती बहुत भली लगेगी और तुम वहाँ से वापस आना पसंद करोगे। कुँएँ का मेंढक बन कर रहने वाले घुट-घुट कर मर जाते हैं। उन्हें दुनिया कब नज़र आती है।”

    मेंढक बाहर गया और दोनों समुंदर की जानिब रवाना हो गए। समुंदर के साहिल पर पहुँचते ही मेंढक की बाँछें खिल गईं। भला उसने कब देखा था ये माहौल, कब देखा था समुंदर की ख़ूबसूरत लहरों को, उभरते हुए सूरज को, मछलियों के ख़ूबसूरत रंगों को और कछुओं की फ़ौज को और मेंढकों के हुजूम को।

    कुँएँ का मेंढक ख़ुश हो गया, पहली बार उसे ठंडी हवा नसीब हुई, पहली बार उसने देखा दुनिया कितनी बड़ी है, पहली बार देखा कि तमाम कछुए, तमाम मछलियाँ और तमाम आबी-जानवर और तमाम छोटे-बड़े मेंढक कितने आज़ाद हैं। सब ख़ुशी से नाच रहे हों जैसे।

    ये सब देख कर मेंढक ने कछुए से कहा, “भाई तुमने मुझ पर बड़ा एहसान किया है, कुँएँ की ज़िंदगी से बाहर निकाला है। अब तो मैं हरगिज़-हरगिज़ कुँएँ के अंदर नहीं जाऊँगा यहीं रहूँगा अपने नए दोस्तों के साथ। दुनिया देखूँगा, दुनिया की ख़ूबसूरती का नज़्ज़ारा करूँगा, ख़ूब खाऊँगा, नाचूँगा, गीत गाऊँगा।

    कुँएँ के मेंढक के इस फ़ैसले से कछुआ बहुत ख़ुश हुआ। उसने ये ख़ुश-ख़बरी सबको सुनाई, कुछोओं को, मेंढकों को, मछलियों को, तमाम आबी जानवरों और आबी परिंदों को, सब ख़ुशी से नाचने लगे गाने लगे।

    कुँएँ के मेंढक ने सोचा, “अगर मैं कुँएँ में रहता तो ये जश्न कब देखता।” उसने ज़रा फ़ख़्र से सोचा, “भला ऐसा इस्तिक़बाल कब किसी मेंढक का हुआ होगा।”

    गुरु कछुए और इस मेंढक में गहरी दोस्ती हो गई। नई आज़ाद ख़ूबसूरत सी प्यारी दुनिया को पाकर मेंढक भूल गया कुँएँ को।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

    Get Tickets
    बोलिए