कूकी कॉक्रोच
उसका नाम कूकी कॉकरोच था। वो लाल बैगों की फ़ैमिली में सबसे छोटा कॉकरोच था। उस गंदे घर में सारे लाल बैग दिन-भर घर-ओ-सहन के गंदे हिस्सों और ग़ुस्ल-ख़ाने और बावर्ची-ख़ाने की नालियों में छिप कर रहते थे। जब घर के लोग इन जगहों की सफ़ाई नहीं करते, कचरा फैलाते और वहाँ थूकते या गंद फेंकते तो सारे लाल बैग ख़ुश हो-हो कर रात के आने का इंतिज़ार करते। जैसे ही रात को उस घर के मकीन सो जाते तो वो सारे लाल बैग निकल कर ये गंदगी चाटते और ख़ुशियाँ मनाते कि ये गंदगी अब न सिर्फ़ उनको खाना-पीना मुहय्या कराएगी बल्कि वो उनकी तादाद में भी इज़ाफ़ा कराएगी।
उस सारी गंदगी से सेर होने के बाद हर-रोज़ किसी न किसी लाल बैग के घर कोई न कोई अंडे या बच्चे ज़रूर आते और दो-तीन दिन के अंदर-अंदर वो बच्चे बड़े हो कर मज़ीद अंडे और बच्चे ला कर नालियों की अंदरूनी जगह या कहीं कचरे के ढेर में छुपे रहते। रात को वो सारे लाल बैग निकल कर ग़ुस्ल-ख़ाने की ज़मीन और दीवारों में गंदगी तलाश करने के लिए कभी खुले हुए टूथ ब्रश और खुले हुए टूथ-पेस्ट को भी चाटते लेकिन सफ़ाई करने के सामान और ख़ुशबू से उन्हें एलर्जी होती थी। इसलिए बस उन टूथ-ब्रश और पेस्ट वग़ैरा पर एक चक्कर लगा कर या मुँह मार कर वापस नालियों में घुस कर ख़ुद को ख़ुद गंदा करते और गंदगी खा कर मोटे ताज़े हो जाते।
अगले दिन सारे लाल बैग अपने-अपने ख़ानदान की गिनती करते तो उस गंदगी में रहने और पलने की वजह से उनके अंडों और बच्चों की तादाद बढ़ गई होती। कभी-कभार उस घर के मकीन कोई शख़्स कीड़े मार स्प्रे ला कर या दवा छिड़क कर लाल बैगों को मार भी डालते। लेकिन लाल बैग का ख़ानदान अगले दिन अपने मरे हुए लाल बैगों की लाश तलाश कर के उनको घसीट कर नालियों में छिपा लेता और रात भर उस लाल बैग को वो नोच-नोच कर खाते और मज़े उड़ाते।
कूकी कॉकरोच लाल बैगों के सरदार का बेटा था लेकिन उसको शौक़ था कि वो साफ़-सुथरी जगह पर रहे और अपने लाल बैग भाईयों का मुर्दा जिस्म न खाए। उसके माँ-बाप उसको समझाते कि तुम लाल बैग ख़ानदान से हो। अगर तुम गंदगी पसंद नहीं करोगे और ये गंद नहीं खाओगे तो न तुम्हारे यहाँ अंडे आएँगे और न बच्चे। ये बात लाल बैगों के ख़ानदान की नश्व-ओ-नुमा के लिए बिलकुल अच्छी नहीं। लाल बैग को तो क़ुदरत ने गंदगी का वो कीड़ा बनाया है जो जंग और धमाके के बाद भी अपनी अफ़्ज़ाइश का सिलसिला सिर्फ़ इसलिए जारी रखते हैं कि हर गंदे काम और जगह पर वो आसानी से परवरिश पा लेते हैं और अपनी नस्ल बढ़ाते हैं। कूकी कॉकरोच अपने माँ-बाप और दादा-दादी की बातें सुन कर कहता कि, “लेकिन मैं देखना चाहता हूँ कि गंदगी के मुक़ाबले में सफ़ाई के क्या-क्या फ़ायदे हैं? मुझे बहुत अच्छा लगता है जब मैं उस घर के वाश बेसिन की नाली में छिप कर सुबह-सुबह एक औरत को एक बच्चे के हाथ साबुन से धुलवाते हुए देखता हूँ। मैं उस बच्चे को खाना खाने से पहले और बाद में मुँह-हाथ धोते भी देखता हूँ और साफ़ सुथरे कपड़े पहन कर और नहा-धो कर स्कूल की वैन में दूसरे बच्चों के साथ जाते और आते भी देखता हूँ... मेरा भी दिल चाहता है कि सुबह उठ कर साबुन से मुँह धो कर, नहा कर दाँत साफ़ कर के सफ़ाई से बैठ कर खाना खाऊँ और ख़ुशबू लगा कर बाहर जाऊँ। आपको पता है मैं कल चुपके से साबुन का एक छोटा सा टुकड़ा और एक नन्ही सी ख़ुशबू की शीशी उस बच्चे के बाथरूम से ले आया हूँ। आज शाम को मैं भी साबुन से नहाऊँगा और ख़ुशबू लगाऊँगा।
कूकी की दादी ने कूकी की ये ख़्वाहिश सुन कर घबराते हुए कहा, “ना-ना कूकी ऐसा न करना… साबुन और ख़ुशबू हमारे लिए बहुत ख़राब है… अरे तुम उस बच्चे की बात कर रहे हो ना जिसकी माँ उसको रोज़ाना ज़बरदस्ती मुँह धुलाती है और साफ़-सुथरे कपड़े पहना कर स्कूल भेजती है, मगर वो शरारती लड़का तो न सिर्फ़ आँख बचा कर टूथ-पेस्ट अधूरा करता है बल्कि साबुन से भी हाथ नहीं धोता और साबुन कुतर-कुतर कर ज़मीन पर फेंक देता है, वो बच्चा स्कूल से अपने कपड़े रोज़ गंदे करके आता है, हर जगह थूकता है और बाहर की उन चीज़ों को खाने की ज़िद करता है जिन पर मक्खियाँ भिन-भिना रही होती हैं। अगरचे वो बच्चा ही हमारे लिए इस घर में रहने का सामान बनाए हुए है लेकिन फिर भी वो बहुत बुरा बच्चा है। क्योंकि उसकी माँ रोज़ाना घर साफ़ करती है और उसको भी साफ़-सुथरा रखने की कोशिश करती है लेकिन वो अपनी माँ की बात भी नहीं सुनता। जो बच्चे अपनी माँ की बात न मानें उन्हें दुनिया में कभी सेहत-ओ-कामयाबी नहीं मिलती... तुम उस लड़के की बात बिलकुल न करो... तुम उस जैसे बिलकुल न बनना।”
कूकी की दादी की ये बातें सुनकर वहाँ खड़ी कूकी की माँ ने जल्दी से कूकी कॉकरोच को अपने गहरे काले और गंदे परों के नीचे छुपाते हुए कहा कि, “अरे मेरे लाल ये बातें छोड़ो, बस ये जान लो कि इस ज़मीन पर हमारी नस्ल अगरचे तीस लाख साल पुरानी है लेकिन फिर भी हम लाल बैगों की उम्र एक साल से ज़्यादा नहीं होती है।
अगर तुम सफ़ाई के बारे में ज़्यादा सोचोगे और साफ़-सुथरे रहने की ख़्वाहिश करोगे तो बीमार पड़ जाओगे। सफ़ाई इन्सानों के लिए बहुत ज़रूरी है, क्योंकि सफ़ाई-सुथराई रखने से इन्सान बीमार नहीं होते और लंबी उम्र पाते हैं।
हम कीड़े हैं और हम गंदगी में परवरिश पाते हैं। इन्सानों के जो बच्चे साफ़-सुथरे रहते हैं, रोज़ाना नहाते-धोते हैं, दाँत साफ़ करते हैं और अपने घरों को भी साफ़ रखते हैं हम उनके घरों में नहीं पल सकते और अगर ग़लती से कोई एक कॉकरोच भी ऐसे घर में चला जाए तो वो वहाँ अपनी नस्ल नहीं बढ़ा सकता, मेरे प्यारे बेटे हमारे लिए वो लोग और वो घर अच्छे हैं जो गंदे रहते हैं और सुस्त-ओ-काहिल हैं। हम ऐसे ही घरों में बीमारियाँ फैलाते हैं और लोगों की तवानाई और ख़ुशी छीन लेते हैं । हम इन्सानों के दुश्मन हैं और इन्सान भी हमारे दोस्त नहीं। इसलिए अब सफ़ाई का ख़्याल तुम अपने दिल से निकाल दो। सफ़ाई इन्सानों की दोस्त और हमारी दुश्मन है। अगर तुम ये गंदगी नहीं खाओगे और गंदी नाली में नहीं रहोगे तो न अपनी नस्ल को बढ़ा पाओगे और न ख़ुद ज़िंदा रह सकोगे।”
ये सब कहते-कहते कूकी की माँ की आँखों में आँसू आ गए। कूकी अपनी माँ और अपने बाप से बहुत मुहब्बत करता था। उसने गटर की नाली में बने अपने घर के कमरे में जा कर उसी वक़्त साबुन का वो टुकड़ा और ख़ुशबू की शीशी घसीट कर बाहर निकाली और नाली में बहते गंदे पानी में डाल कर ये चीज़ें बहा डालीं।
अब उसने फ़ैसला कर लिया था कि वो गंदी नालियों में ही रहेगा और किसी साफ़ घर में नहीं जाएगा और न सफ़ाई पसंद करने वाले लोगों के क़रीब जाएगा।
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