मासूम आरज़ू
सुबह का वक़्त था, बड़ी ख़ुश-गवार हवा चल रही थी। इसका मज़ा लेते हुए मैं चादर ओढ़े चारपाई पर लेटा हुआ था कि अचानक मेरे दाएँ कान में किसी की पतली-पतली उंगलियाँ महसूस हुईं।
मैं हड़बड़ाते हुए उठ कर बैठ गया। सामने क्या देखता हूँ कि मेरे छोटे भाई मियाँ सईद खड़े हुए हैं।
“क्या बात है?” मैंने आँखें लाल-पीली करते हुए सवाल किया।
“भय्या, आप एक लोरी सुनाया करते थे। ‘चंदा मामा दूर के।’ और आप ये भी कहा करते थे कि चाँद में रात को बड़े-बड़े बल्ब जलते हैं। इसीलिए चाँद बहुत ख़ूबसूरत दिखाई पड़ता है। वहाँ शीशे की परियाँ रहती हैं जो नाचती हैं, गाती हैं और रात को परियाँ सितारे बन जाती हैं। कहा था ना आपने?”
उसने उस कहानी को सुना डाला जो कि अक्सर मैं उसको बहलाने के लिए चाँद के मुताल्लिक़ सुनाया करता था।
“और आपने ये भी कहा था कि वो ख़ुदा की इबादत भी करना जानती हैं। अगर वो अल्लाह मियाँ का हुक्म नहीं मानती हैं तो अल्लाह मियाँ उन परियों को ज़मीन पर फेंक देते हैं जो यहाँ तक आते-आते सफ़ेद पत्थर बन जाती हैं। उन्हीं पत्थरों का ताज-महल बना है... मगर भय्या, अब्बू जान तो बाहर किसानों को बता रहे हैं कि वो लोग, वो जो चाँद पर गए थे, उन लोगों ने वापस आ कर बताया है कि चाँद पर सिर्फ़ पत्थर ही पत्थर हैं। वहाँ न हवा है और न पानी। वहाँ कोई ज़िंदा चीज़ नहीं है और वहाँ अंधेरा ही बहुत है, चाँद की कोई अपनी रौशनी है?”
बड़ी हैरत से अपनी बात को जारी रखते हुए उसने सवाल किया।
“भय्या आप झूट बोलते हैं, वो भी इतना झूट। मेरे मास्टर साहब कहते हैं कि झूट बोलना गुनाह है। आप इतने दिनों तक तक गुनाह करते रहे... ईं... ईं...” और वो आँखें मलते हुए रोने का बहाना कर के बोला,
“भय्या, मुझे एक रुपया दीजिए, नहीं तो मैं अम्मी से शिकायत कर दूँगा कि आप झूट बोलते हैं। फिर आप ख़ूब मार खाएँगे।”
और मैंने बात टालने के लिए कुछ पैसे दे दिए ताकि मियाँ सईद का बनावटी रोना बंद हो जाए और ये तास्सुर भी क़ायम हो जाए कि मैं अपने बिला वजह के झूट पर शर्मिंदा हूँ।
ख़ैर मियाँ सईद उछलते-कूदते अम्मी के पास गए और फ़र्माइश की, कि अम्मी आज पूरी-सब्ज़ी पकाईए। आज मेरा बहुत दिल चाह है।
उधर अम्मी ने पूरी सब्ज़ी पकाने की तैयारी शुरू की, कि इधर मियाँ सईद बग़ैर बताए कहीं ग़ायब हो गए।
क़रीब एक घंटे के बाद एक बिस्कुट का बंडल और कुछ चॉकलेट के साथ आए। सब लोगों ने नाशता किया। नाशते के बाद मियाँ सईद बोले, “अम्मी, आप नाशता-दान में पूरी रख दीजिए।”
अम्मी ने सोचा कि शायद मियाँ पूरी-सब्ज़ी अपने दोस्तों के लिए ले जाएँगे। इसलिए उन्होंने पूरी-सब्ज़ी नाशते-दान में रख दी।
मियाँ सईद ने नाशते-दान, बिस्कुट का बंडल और चॉकलेट एक प्लास्टिक की बास्केट में रखी। कपड़े बदले, जूते पहने, कंघी की, एक हाथ में बास्केट संभाली और दूसरे हाथ से सलाम कर के ये कहते हुए चल पड़े, “अम्मी टाटा, भाई जान टाटा, गुड़िया टाटा, मैं चाँद पर जा रहा हूँ।”
इस पर अम्मी ने हैरत से पूछा, “ख़ैरीयत तो है बेटे? चाँद पर क्या करने जा रहे हो?”
इसके जवाब में सईद ने बड़े पुर-एतिमाद लहजे में कहा, “ये देखने कि कहीं भाई जान की तरह अब्बू जान भी तो चाँद के बारे में झूट नहीं बोल रहे हैं।”
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