हज़ारों साल पहले का वाक़िया है चीन पर एक नेक दिल बादशाह हुकूमत करता था। उसकी एक ही लड़की थी। शहज़ादी ख़ावर उसका नाम था। वो बहुत ख़ूबसूरत थी। उसका चेहरा सूरज की तरह चमकता दमकता था। शहज़ादी को बचपन ही से फूल अच्छे लगते थे। वो हर वक़त अपने महल के बाग़ में कलियों और फूलों से खेलती रहती। एक दिन सैर के दौरान उसने गुलाब की टहनी पर फुदकती हुई एक सोहनी, मन मोहिनी सी चिड़िया देखी। शहज़ादी का जी चाहता था कि उस चिड़िया को पकड़ कर किसी पिंजरे में बंद कर ले। उसने दौड़ कर चिड़िया को पकड़ने की कोशिश की, मगर चिड़िया जितनी ख़ूबसूरत थी, उतनी ही शरारती थी। वो एक शाख़ से उड़ती तो दूसरी पर जा कर बैठ जाती
आख़िर थक कर शहज़ादी ने एक कंकरी उठाई और चिड़िया को दे मारी। वो बे-चारी ज़ख़मी हो कर क्यारी में गिर गई। शहज़ादी ख़ावर उसे पकड़ने के लिए लपकी, मगर जूं ही उस के क़रीब गई, उस की नज़रों के सामने धुआँ सा छा गया। फिर उस धुएँ में शहज़ादी को एक काली काली डरावनी शक्ल नज़र आई। वो डर के मारे सहम गई, और पीछे दौड़ने वाली थी कि किसी के क़हक़हे की आवाज़ सुनाई दी। शहज़ादी का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा। उसने एक चीख़ मारी, और ग़श खा कर ज़मीन पर गिर पड़ी। दूर खड़ा माली ये मंज़र देख रहा था।
वो भागा भागा शहज़ादी के पास आया, और उसे होश में लाने की बड़ी कोशिश की। जब काफ़ी देर तक शहज़ादी को होश ना आया, तो वो उसे उठा कर मलिका के पास ले आया। बादशाह को इत्तिला मिली तो वो भी दरबार बर्ख़ास्त कर के महल में चला आया और बहुत से हकीमों को शहज़ादी के ईलाज के लिए बुलवाया, मगर उसे होश ना आया। ये ख़बर मुल्क के कोने कोने में फैल गई। रात के बारह बजे के क़रीब बादशाह परेशानी के आलम में शहज़ादी की चारपाई के गिर्द टहल रहा था कि उसे कमरे में एक आवाज़ आई ‘‘सब यहां से निकल जाओ वर्ना शहज़ादी मर जाये गी।’’ बादशाह को अपनी इकलौती बेटी से बहुत प्यार था, वो फ़ौरन कमरे से निकल गया। और दिन निकलने का इंतिज़ार करने लगा। सुब्ह-सवेरे वो शहज़ादी के कमरे में दाख़िल हुआ तो वो शहज़ादी को बिस्तर से ग़ायब पाकर हैरान रह गया। चारपाई के सिरहाने एक प्यारी सी चिड़िया बैठी हुई थी। बादशाह ने उसे उड़ाना चाहा, मगर ऐसा ना हो सका। बादशाह ने अपने वज़ीर को बुला कर सलाह मश्वरा किया, तो वज़ीर ने कहा
‘‘जहांपनाह इस चिड़िया को पिंजरे में बंद कर दिया जाये।’’ इस के बाद सारे मुल्क में मुनादी कर दी जाएगी, कि जो पिंजरे की चिड़िया को शहज़ादी के रूप में लाएगा उसी से शहज़ादी की शादी कर दी जाएगी। ये ऐलान सुनकर बहुत से लोग अपनी क़िस्मत आज़माने निकले, लेकिन कोई भी इस राज़ को ना समझ सका। इत्तिफ़ाक़ से दूर-दराज़ के शहर में एक ग़रीब लड़का रहता था। जिसने दिन रात एक कर के दसवीं जमात पास की थी। उस लड़के का नाम शरीफ़ था। वो बड़ा मेहनती और बा-अख़्लाक़ लड़का था। उस का दिल चाहता था कि किसी तरह से वो पिंजरे की चिड़िया को शहज़ादी के रूप में ले आए और फिर चीन का बादशाह बन जाये।
शरीफ़ एक रात इसी सोच में डूबा हुआ था कि उसे कमरे से खी खी खी की आवाज़ सुनाई दी। शायद कोई हंस रहा है, शरीफ़ ने सोचा। फिर उसने इर्द-गिर्द देखा लेकिन वहां उसे सिर्फ़ अपना ही साया नज़र आ रहा था। थोड़ी देर के बाद फिर हंसी की आवाज़ आई। शरीफ़ मुख़ातब हुआ।
‘‘कौन है?’’
‘‘मैं हूँ।’’ आवाज़ आई
उसने पूछा। ‘‘मैं कौन?’’
आवाज़ आई। ‘‘मैं भूत हूँ।’’
शरीफ़ ने सवाल किया। ‘‘यहां क्या लेने आए हो?’’
भूत ने जवाब दिया। ‘‘कुछ नहीं।’’
‘‘जाओ फिर मुझे आराम करने दो।’’ शरीफ़ ने कहा। भूत ने कहा। ‘‘मैं नहीं जाऊँगा शरीफ़ ने कहा। ‘‘तो ना जाओ, मेरे साथ आकर लेट रहो।’’ भूत ये सुनकर बहुत ख़ुश हुआ। उसने शरीफ़ से कहा। ‘‘तुम अच्छे लड़के मालूम होते हो। मुझे दोस्त बनाना पसंद करोगे?’’
‘‘क्यों नहीं।’’ शरीफ़ ने जवाब दिया। और फिर एक नन्हे-मुन्ने बोने की शक्ल का भूत शरीफ़ के कमरे में टहलने लगा। दोनों ने एक दूसरे को देखा और घुल मिलकर बातें करने लगे। शरीफ़ ने भूत को बताया कि उस क दिल में शहज़ादी से शादी करने की ख़्वाहिश है। मगर वो बे-चारी तो पिंजरे में बंद है। भूत ये सुनकर बहुत हंसा और कहने लगा। ‘‘यार फ़िक्र मत करो, तुम्हारी ये ख़्वाहिश पूरी हो जाएगी उसके बाद भूत ने कहा कि ‘‘मैं ये सारा राज़ ख़ूब जानता हूँ।’’
शरीफ़ ने पूछा
‘‘कैसे? ज़रा बताओ तो सही।’’
भूत ने कहा। ‘‘एक दिन मैं सुब्ह शहज़ादी के बाग़ में चिड़िया बन कर उड़ रहा था कि शहज़ादी ने मुझे कंकरी मार कर छेड़ा, मुझे ग़ुस्सा आगया। मैं जब अपने असली रूप में आया, तो शहज़ादी बेहोश हो गई। रात को मैं उसे वहाँ से उठा लाया और उस की जगह एक चिड़िया छोड़ आया।
अब ये शहज़ादी समुंद्र पार के जज़ीरे की एक काल कोठरी में बंद है ये लो उसकी चाबी, लेकिन मेरे दोस्त ज़रा हिम्मत से जाना, रास्ता बहुत ख़तरनाक है। अगर कोई और भूत तुम्हारा रास्ता रोके तो उसे मेरी ये अँगूठी दिखा देना।’’ इतना कह कर भूत कमरे से ग़ायब हो गया। शरीफ़ दूसरे दिन सीधा बादशाह के पास पहुंचा और उस से कहा कि मुझे असल राज़ मालूम हो चुका है। आपकी बेटी समुंद्र पार के जज़ीरे में क़ैद है। मैं जब उसे रिहा कराऊँगा तो ये पिंजरे की चिड़िया ख़ुद बख़ुद उड़ जाएगी।
बादशाह ये सुनकर बहुत ख़ुश हुआ। शरीफ़ ने उस से इजाज़त तलब की और काल कोठड़ी की तरफ़ रवाना हो गया। रास्ते में उसे एक बूढ़ा बाबा मिला, उसने शरीफ़ से कहा। ‘‘बेटा मुझे बड़ी भूक लगी हुई है, कुछ खाने को है तो दे दो?’’ शरीफ़ के पास एक ही रोटी थी जो उसने बाबा को दे दी। बाबा ने उसे दुआएं दीं। वो अपनी मंज़िल की तरफ़ जा रहा था कि समुंद्र के किनारे, बाहर ख़ुशकी पर एक मछली तड़प रही थी। शरीफ़ ने उसे पकड़ कर पानी में छोड़ दिया। मछली ने भी उसे ढेर सारी दुआएं दीं। फिर शरीफ़ को रास्ते में कई भूत मिले, मगर उसने अपनी अँगूठी दिखाई तो उन्होंने उसे जाने दिया। समुंद्र पार के जज़ीरे में पहुंचते ही शरीफ़ की नज़र एक पुरानी टूटी फूटी कोठरी पर पड़ी। वो समझ गया कि शहज़ादी यहीं होगी। उसने बढ़कर दरवाज़ा खोला तो सामने पत्तों के बने हुए क़ालीन पर शहज़ादी ख़ावर सोई हुई थी। शरीफ़ के क़दमों की आवाज़ सुनकर वो जाग पड़ी और अपने क़रीब एक इन्सान की सूरत देखकर वो रोने लगी। शरीफ़ ने उसकी हिम्मत बढ़ाई और उसे वापस महल में ले आया। बादशाह अपनी बेटी को ज़िंदा सलामत देखकर बहुत ख़ुश हुआ। उसने पिंजरे की तरफ़ देखा तो वो ख़ाली था। चिड़िया उस में से ख़ुदबख़ुद उड़ चुकी थी और उस के सामने उस की बेटी ख़ावर बैठी थी। बादशाह ने उस की शादी शरीफ़ से कर दी, और दोनों हंसी ख़ुशी ज़िंदगी गुज़ारने लगे।
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