शहज़ाद के कार्टून
वो कान के दर्द से तड़प रहा था कि उसके अब्बू उसे डॉक्टर के पास लिए जाने पर मजबूर हो गए डॉक्टर ने चेक किया तो कान में कोई मवाद था जो उसे तकलीफ़ दे रहा था।
ख़ैर बच्चा समझ कर इस बात को नज़र-अंदाज कर दिया गया कि कुछ भी कान में जा सकता है। नहाते हुए, खेलते हुए वग़ैरा-वग़ैरा और ईलाज के बा’द वो तंदुरुस्त हो गया।
कुछ हफ़्तों के बा’द उसके गले में एक छोटे से स्नूकर टेबल का छोटा सा गेंद फंस गया तो साँस रुक गई। इस मर्तबा भी डॉक्टर की फ़ौरी तिब्बी इमदाद ने उसकी जान बचा ली।
फिर एक दिन वो चचा के पास बैठा टीवी देख रहा था कि अचानक उसके हाथ-पाँव और गर्दन खिंचने लगे। चचा ने देखा तो घबरा गए और उसे फ़ौरी तौर पर डॉक्टर के पास ले गए।
डॉक्टर को जल्द ही मु'आईना से मा’लूम हो गया कि उसने कोई ताक़तवर चीज़ या ऐसा कुछ ना-मुनासिब सा खाया है जिसके बाइस ये सब हुआ। उसका मे'दा वॉश हुआ, ड्रिप लगी और एक दिन फिर वो हस्पताल से वापिस आ गया। सबने बहुत पूछा मगर उसने कुछ नहीं बताया।
लेकिन सब घर वाले परेशान थे कि शहज़ाद के साथ ही ऐसा क्यों होता है। क्यों कि वो ब-ज़ाहिर न ज़िद्दी है, न शरारती, ना ही दूसरे बच्चों की तरह इधर-उधर भागता फिरता है। वो तो सिर्फ़ टीवी, कार्टून, किताबों का शौक़ीन है या फिर खिलौनों से खेलता रहता है।
मगर उसके चचा के लिए ये राज़ मु'अम्मा बन गया कि आख़िर शहज़ाद के साथ ही ऐसा क्यों होता है। उन्होंने इसको खोजने की ठान ली।
एक दिन चचा अज़ीम, शहज़ाद को सैर के लिए ले गए। पहले जॉय लैंड गए। वो फूले-फूले ग़ुबारों के घरों में कूदता रहा। झूले लिए, फिर चिड़िया-घर गए और इसके बा’द उन्होंने उसे आइसक्रीम खिलाने का वा'दा किया। मगर एक शर्त पे... कि वो शहज़ाद से जो पूछेंगे वो सच-सच बताएगा।
शहज़ाद मान गया।
वो दोनों आइसक्रीम हाऊस गए। मेज़ पर बैठे तो चचा ने कहा, “पहले मेरे सवाल, फिर आइसक्रीम।” वो फिर मान गया।
“अच्छा शहज़ाद ये बताओ कान में हुआ क्या था? गया क्या था?”
“चाचू, वो मैं कार्टून देख रहा था। कार्टून ने एक कान में पानी का पाइप लगाया तो दूसरे कान से पानी बाहर निकलने लगा मैंने भी यूँ ही किया मगर मेरे दूसरे कान से पानी बाहर नहीं आया।”
अच्छा और वो स्नूकर बॉल गले में कैसे फंसा? वो तो मेज़ पर खेलने की चीज़ है।”
“चाचू वो भी कार्टून में देखा था कि वो एक छोटा सा गेंद मुँह में डाल कर खा जाता है। कुछ देर बा’द बहुत से रंग-बिरंग गेंद मुँह और कान से निकलने लगते हैं।”
चचा मुस्कुराए, फिर पूछने लगे और वो उस दिन तुम्हारे हाथ पाँव टेढ़े जो होने लगे थे।
“चाचू वो भी कार्टून में ही देखा था कि एक कार्टून ताक़त की दवा पीता है तो उसमें बहुत जान आ जाती है और वो बड़े-बड़े काम करता है। सो मैंने भी वो ताक़त की दवाई सारी पी ली जो अम्मी मुझे सुबह एक चमचा ये कह कर पिलाती हैं कि ये पिएगा तो मेरा बेटा बहुत ताक़तवर और जल्द बड़ा हो जाएगा और पी कर शीशी डस्टबिन में फेंक दी मगर...”
वो हल्का सा मुस्कुराने की कोशिश करने लगा। फिर कहने लगा,
“चाचू, अब मैंने सच-सच बता दिया है। मेरी आइसक्रीम...”
“अच्छा शहज़ाद, कौन सी आइसक्रीम खाओगे? मगर पहले एक वा'दा और करना होगा।”
”ओके चाचू वा'दा... चॉकलेट आइसक्रीम खाउँगा।”
चचा ने दो चॉकलेट आइसक्रीम मंगवाईं और कहने लगे, “देखो शहज़ाद बेटा ये कार्टून सिर्फ़ देखने के लिए होते हैं। इंजॉए करने के लिए होते हैं।
ये कोई जान-दार बच्चे नहीं होते कि उनको नुक़्सान पहुँचे, तकलीफ़ हो। ये सिर्फ़ चलती-फिरती तस्वीरें होती हैं कि जिन्हें बच्चों को ख़ुश करने के लिए बनाया जाता है।
अगर कोई बच्चा उन जैसी हरकतें करेगा तो वो तुम्हारी तरह मुश्किल में ही फंसा रहेगा। वा'दा करो आइन्दा कोई कार्टूनी हरकत नहीं करोगे।”
“ओके चाचू, पक्का वा'दा... प्रॉमिस, आइन्दा ऐसा नहीं करूँगा।”
इतने में आइसक्रीम आ चुकी थी और दोनों मज़े से आइसक्रीम खाने लगे।
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