अभिषेक शुक्ला
ग़ज़ल 24
अशआर 23
कभी कभी तो ये वहशत भी हम पे गुज़री है
कि दिल के साथ ही देखा है डूबना शब का
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
तमाम शहर पे इक ख़ामुशी मुसल्लत है
अब ऐसा कर कि किसी दिन मिरी ज़बाँ से निकल
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
हम वहशी थे वहशत में भी घर से कभी बाहर न रहे
जंगल जंगल फिर भी कितना नाम हुआ हम लोगों का
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
वीडियो 9
This video is playing from YouTube