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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अमीर रज़ा मज़हरी

1908 | कोलकाता, भारत

अमीर रज़ा मज़हरी

ग़ज़ल 15

अशआर 7

क्या तअज्जुब है जो यारों ने रिफ़ाक़त छोड़ी

बैठता कौन है गिरती हुई दीवार के पास

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तुम किसी के भी हो नहीं सकते

तुम को अपना बना के देख लिया

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देखने वाले समझते हैं शनासा भी नहीं

आज बेगाने नज़र आते हैं हम तुम कितने

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हम को बचपन ही से इक शौक़ था बर्बादी से

नाम लिख लिख के मिटाते थे ज़मीं पर अपना

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हमारे ब'अद सुनना दूसरों से

कहानी ये अभी पूरी नहीं है

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पुस्तकें 7

 
 

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