फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल 95
नज़्म 1
अशआर 89
जिस्म-ए-आज़ादी में फूंकी तू ने मजबूरी की रूह
ख़ैर जो चाहा किया अब ये बता हम क्या करें
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तुम्हीं कहो कि तुम्हें अपना समझ के क्या पाया
मगर यही कि जो अपने थे सब पराए हुए
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दुनिया मेरी बला जाने महँगी है या सस्ती है
मौत मिले तो मुफ़्त न लूँ हस्ती की क्या हस्ती है
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क़ितआ 2
रुबाई 3
पुस्तकें 42
चित्र शायरी 7
क्या छुपाते किसी से हाल अपना जी ही जब हो गया निढाल अपना हम हैं उस के ख़याल की तस्वीर जिस की तस्वीर है ख़याल अपना वो भी अब ग़म को ग़म समझते हैं दूर पहुँचा मगर मलाल अपना तू ने रख ली गुनाहगार की शर्म काम आया न इंफ़िआल अपना देख दिल की ज़मीं लरज़ती है याद-ए-जानाँ क़दम संभाल अपना बा-ख़बर हैं वो सब की हालत से लाओ हम पूछ लें न हाल अपना मौत भी तो न मिल सकी 'फ़ानी' किस से पूरा हुआ सवाल अपना
वीडियो 14
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