हसरत जयपुरी
ग़ज़ल 16
नज़्म 3
अशआर 7
किस वास्ते लिक्खा है हथेली पे मिरा नाम
मैं हर्फ़-ए-ग़लत हूँ तो मिटा क्यूँ नहीं देते
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ख़ुदा जाने किस किस की ये जान लेगी
वो क़ातिल अदा वो क़ज़ा महकी महकी
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जब प्यार नहीं है तो भुला क्यूँ नहीं देते
ख़त किस लिए रक्खे हैं जला क्यूँ नहीं देते
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ये किस ने कहा है मिरी तक़दीर बना दे
आ अपने ही हाथों से मिटाने के लिए आ
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