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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Ibn-e-Safi's Photo'

इब्न-ए-सफ़ी

1928 - 1980 | कराची, पाकिस्तान

उर्दू के सबसे बड़े जासूसी उपन्यासकार जो पहले ' असरार नारवी ' के नाम से शायरी करते थे।

उर्दू के सबसे बड़े जासूसी उपन्यासकार जो पहले ' असरार नारवी ' के नाम से शायरी करते थे।

इब्न-ए-सफ़ी के शेर

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चाँद का हुस्न भी ज़मीन से है

चाँद पर चाँदनी नहीं होती

लिखने को लिख रहे हैं ग़ज़ब की कहानियाँ

लिक्खी जा सकी मगर अपनी ही दास्ताँ

हुस्न बना जब बहती गंगा

इश्क़ हुआ काग़ज़ की नाव

ज़मीन की कोख ही ज़ख़्मी नहीं अंधेरों से

है आसमाँ के भी सीने पे आफ़्ताब का ज़ख़्म

दिल सा खिलौना हाथ आया है

खेलो तोड़ो जी बहलाओ

बिल-आख़िर थक हार के यारो हम ने भी तस्लीम किया

अपनी ज़ात से इश्क़ है सच्चा बाक़ी सब अफ़्साने हैं

डूब जाने की लज़्ज़तें मत पूछ

कौन ऐसे में पार उतरा है

दिन के भूले को रात डसती है

शाम को वापसी नहीं होती

देख कर मेरा दश्त-ए-तन्हाई

रंग-ए-रू-ए-बहार उतरा है

अजीब बात है कीचड़ में लहलहाए कँवल

फटे पुराने से जिस्मों पे सज के रेशम आए

बुझ गया दिल तो ख़राबी हुई है

फिर किसी शोला-जबीं से मिलिए

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