इशरत आफ़रीं
ग़ज़ल 40
नज़्म 38
अशआर 13
अपनी आग को ज़िंदा रखना कितना मुश्किल है
पत्थर बीच आईना रखना कितना मुश्किल है
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ख़्वाहिशें दिल में मचल कर यूँही सो जाती हैं
जैसे अँगनाई में रोता हुआ बच्चा कोई
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वो जिस ने अश्कों से हार नहीं मानी
किस ख़ामोशी से दरिया में डूब गई
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शाम को तेरा हँस कर मिलना
दिन भर की उजरत होती है
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वीडियो 9
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