कफ़ील आज़र अमरोहवी
ग़ज़ल 16
नज़्म 13
अशआर 21
एक इक बात में सच्चाई है उस की लेकिन
अपने वादों से मुकर जाने को जी चाहता है
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कब आओगे ये घर ने मुझ से चलते वक़्त पूछा था
यही आवाज़ अब तक गूँजती है मेरे कानों में
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मैं अपने-आप से हर दम ख़फ़ा रहता हूँ यूँ 'आज़र'
पुरानी दुश्मनी हो जिस तरह दो ख़ानदानों में
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मकाँ शीशे का बनवाते हो 'आज़र'
बहुत आएँगे पत्थर देख लेना
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हल न था मुश्किल का कोई उस के पास
सिर्फ़ वादे आसमानी दे गया
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चित्र शायरी 2
वीडियो 3
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