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ख़लील-उर-रहमान आज़मी

1927 - 1978 | अलीगढ़, भारत

आधुनिक उर्दू आलोचना के संस्थापको में अग्रणी।

आधुनिक उर्दू आलोचना के संस्थापको में अग्रणी।

ख़लील-उर-रहमान आज़मी

ग़ज़ल 66

नज़्म 36

अशआर 56

जाने क्यूँ इक ख़याल सा आया

मैं हूँगा तो क्या कमी होगी

तेरे हो सके तो किसी के हो सके

ये कारोबार-ए-शौक़ मुकर्रर हो सका

नहीं अब कोई ख़्वाब ऐसा तिरी सूरत जो दिखलाए

बिछड़ कर तुझ से किस मंज़िल पर हम तन्हा चले आए

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बने-बनाए से रस्तों का सिलसिला निकला

नया सफ़र भी बहुत ही गुरेज़-पा निकला

मिरी नज़र में वही मोहनी सी मूरत है

ये रात हिज्र की है फिर भी ख़ूब-सूरत है

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लेख 4

 

पुस्तकें 57

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वीडियो 3

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
तू भी अब छोड़ दे साथ ऐ ग़म-ए-दुनिया मेरा

ख़लील-उर-रहमान आज़मी

बन-बास

मैं कि ख़ुद अपनी ही आवाज़ के शो'लों का असीर ख़लील-उर-रहमान आज़मी

है 'अजीब चीज़ मय-ए-जुनूँ कभी दिल की प्यास नहीं बुझी

ख़लील-उर-रहमान आज़मी

ऑडियो 3

आईना-दर-आईना

बन-बास

सौदा-गर

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