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मोमिन ख़ाँ मोमिन

1800 - 1852 | दिल्ली, भारत

ग़ालिब और ज़ौक़ के समकालीन। वह हकीम, ज्योतिषी और शतरंज के खिलाड़ी भी थे। कहा जाता है मिर्ज़ा ग़ालीब ने उनके शेर "तुम मेरे पास होते हो गोया, जब कोई दूसरा नही होता" पर अपना पूरा दीवान देने की बात कही थी

ग़ालिब और ज़ौक़ के समकालीन। वह हकीम, ज्योतिषी और शतरंज के खिलाड़ी भी थे। कहा जाता है मिर्ज़ा ग़ालीब ने उनके शेर "तुम मेरे पास होते हो गोया, जब कोई दूसरा नही होता" पर अपना पूरा दीवान देने की बात कही थी

मोमिन ख़ाँ मोमिन के ऑडियो

ग़ज़ल

असर उस को ज़रा नहीं होता

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

असर उस को ज़रा नहीं होता

फ़सीह अकमल

इस वुसअत-ए-कलाम से जी तंग आ गया

फ़सीह अकमल

ग़ैरों पे खुल न जाए कहीं राज़ देखना

फ़सीह अकमल

जूँ निकहत-ए-गुल जुम्बिश है जी का निकल जाना

फ़सीह अकमल

दिल क़ाबिल-ए-मोहब्बत-ए-जानाँ नहीं रहा

फ़सीह अकमल

दीदा-ए-हैराँ ने तमाशा किया

फ़सीह अकमल

ये उज़्र-ए-इम्तिहान-ए-जज़्ब-ए-दिल कैसा निकल आया

फ़सीह अकमल

वादा-ए-वस्लत से दिल हो शाद क्या

फ़सीह अकमल

वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो

Fahad Husain

वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो

नय्यरा नूर

शोख़ कहता है बे-हया जाना

फ़सीह अकमल

हम-रंग लाग़री से हूँ गुल की शमीम का

फ़सीह अकमल

असर उस को ज़रा नहीं होता

अमीता परसुराम मीता

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