मुख़्तार सिद्दीक़ी
ग़ज़ल 13
नज़्म 5
अशआर 11
मेरी आँखों ही में थे अन-कहे पहलू उस के
वो जो इक बात सुनी मेरी ज़बानी तुम ने
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मैं तो हर धूप में सायों का रहा हूँ जूया
मुझ से लिखवाई सराबों की कहानी तुम ने
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नूर-ए-सहर कहाँ है अगर शाम-ए-ग़म गई
कब इल्तिफ़ात था कि जो ख़ू-ए-सितम गई
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क्या क्या पुकारें सिसकती देखीं लफ़्ज़ों के ज़िंदानों में
चुप ही की तल्क़ीन करे है ग़ैरत-मंद ज़मीर हमें
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हास्य शायरी 1
लेख 1
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